Saturday 31 March 2018

डिजिटल लत की वजह से युवा पीढ़ी अपने जीवन से नियंत्रण खो रहे हैं।



पिछले दिनों मैंने कहीं पढ़ा कि ‘प्रतिदिन का 1.5 जीबी इंटरनेट डेटा युवाओं को उनकी बेरोजगारी का अहसास नहीं होने दे रहा है। इस गंभीर बात के स्पष्ट रूप से दो पहलू हैं। एक तरफ देश में तेजी से बेरोजगारी बढ़ रही है तो दूसरी तरफ युवाओं की एक बड़ी संख्या साइबर एडिक्शन की तरफ बढ़ रही है। फिलहाल देश की एक बड़ी आबादी इंटरनेट, स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के साइबर एडिक्शन का शिकार हो चुकी है। यह संकट भारत सहित पूरी दुनिया में तेजी से फैलता जा रहा है और अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि युवाओं में बेरोजगारी सहित देश की वास्तविक समस्याओं के प्रति सोचने और समझने की क्षमता ही खत्म हो रही है। हाल में हुए फेसबुक डेटा लीक प्रकरण से भी यह बात साफ हो गई है कि युवाओं के इसी साइबर एडिक्शन का फायदा कैंब्रिज एनालिटिका जैसी कंपनियां उठा रही हैं। वे युवाओं के व्यक्तिगत आंकड़े अब किसी भी व्यक्ति या संस्था को बेच रही हैं। • जाति और धर्म

भारत में साइबर एडिक्शन को लेकर किए गए एक सर्वे के अनुसार 18 से 30 साल के बीच पांच में से तीन युवा ऐसे हैं, जो अपने स्मार्टफोन के बगैर इस तरह बेचैन होने लगते हैं जैसे उनका कोई अंग गायब हो। इनमें 96 फीसदी सवेरे उठकर सबसे पहले सोशल मीडिया पर जाते हैं। 70 फीसदी युवाओं का कहना है कि वे ई-मेल और सोशल मीडिया को चेक किए बगैर जी नहीं सकते। पिछले दिनों दस देशों के 10,000 लोगों पर वैश्विक प्रबंधन परामर्श कंपनी ए.टी. कियर्नी द्वारा किए गए शोध में यह बात सामने आई कि 53 फीसदी भारतीय हर घंटे इंटरनेट से जुड़े रहते हैं जो कि वैश्विक औसत 51 फीसदी से ज्यादा है। इनमें 77 फीसदी लोग सोशल नेटवर्किंग साइटों पर रोजाना लॉग इन करते हैं। देश में डिजिटल नशे की स्थिति को हम अपने आसपास और घरों में भी महसूस कर सकते हैं। लोगों को आज आभासी दुनिया में दोस्त बनाने की ऐसी लत लग गई है कि वास्तविक जिंदगी में कोई रिश्ता स्थापित करना मुश्किल लगने लगा है। वैसे भी जब व्यक्ति स्मार्टफोन के चक्कर में अपने काम और खाली समय से समझौता करने लगे तो समझिए कि यह लत की शुरुआत है। इंटरनेट और सोशल मीडिया का बहुत बड़ा सकारात्मक पक्ष यह है कि इसने संसार को ग्लोबल विलेज बना दिया है और सूचनाओं का आदान-प्रदान भी पलक झपकते होने लगा है, लेकिन अत्यधिक उपयोग की वजह से आज यह साइबर एडिक्शन की वजह भी बन गया है। युवा वर्ग सूचनाओं के बोझ से दबा जा रहा है और सोचने-समझने की उसकी क्षमता लगातार कम होती जा रही है। साथ ही काम में मौलिकता का अभाव स्पष्ट रूप से दिख रहा है। मशहूर लेखक निकोलस कार ने मन-मस्तिष्क पर इंटरनेट के प्रभाव पर अपनी चर्चित पुस्तक ‘दि शैलोज में कहा है, ‘इंटरनेट हमें सनकी बनाता है, हमें तनावग्रस्त करता है, हमें उस ओर ले जाता है जहां हम इस पर ही निर्भर हो जाएं।

पिछले दिनों आई इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 तक भारत में 1.89 करोड़ लोग बेरोजगार होंगे। जबकि साल 2017 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1.83 करोड़ थी। इस समय देश की 11 फीसदी आबादी बेरोजगार है। इस तरह भारत दुनिया के सबसे ज्यादा बेरोजगारों का देश बन गया है। श्रम मंत्रालय के श्रम ब्यूरो के सर्वे से भी सामने आया है कि बेरोजगारी दर पिछले पांच साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई है। देश में बेरोजगारी के इन भयावह आंकड़ों के बावजूद युवाओं में अगर बड़े पैमाने पर बेचैनी नहीं दिखती तो इसकी एक वजह सोशल मीडिया भी है जहां सरकारों ,राजनीतिक दलों के आईटी सेल द्वारा इन्हें बरगला कर इनका ध्यान दूसरी तरफ बंटाया जा रहा है। युवाओं की एक बड़ी संख्या को जाति और धर्म के मुद्दों पर उलझाया जा रहा है जिससे उनकी नजर अपनी बेरोजगारी पर न जाए। ठीक वैसे ही जैसे शरीर के किसी हिस्से में दर्द होने पर दर्द का जड़ से इलाज करने के बजाय दर्द की दवा या दर्द का इंजेक्शन देकर मरीज को राहत दी जाए। वैसे यह राहत अस्थाई ही है। जैसे ही कुछ घंटों में दवा का असर कम होगा फिर से मूल समस्या उभर आएगी।

डिजिटल लत की वजह से एक पीढ़ी के रूप में भी हम अपने जीवन से नियंत्रण खो रहे हैं। पहले लोग समस्याओं पर आंदोलन करने के लिए सड़कों पर उतरते थे, लेकिन अब यह ट्रेंड भी सीमित हो गया है और विरोध प्रदर्शन का केंद्र सड़क के बजाय सोशल मीडिया बन गया है। भारत में बेहद सस्ती दरों में उपलब्ध डेटा की वजह से कम आय वर्ग वाले लोगों के पास भी स्मार्टफोन उपलब्ध हैं जिसका सदुपयोग के बजाय कुछ स्तर तक दुरुपयोग भी होने लगा है। एक सर्वे के अनुसार करीब 92 प्रतिशत गरीब किशोर इंटरनेट का प्रयोग कर रहे हैं और 65 फीसद के पास स्मार्टफोन हैं। वहीं, अच्छी कमाई वाले घरों के 97 प्रतिशत बच्चे इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं और 69 फीसद के पास स्मार्टफोन हैं। कई बार एडिक्शन के शिकार लोगों को पता भी नहीं चलता कि यह कब उनके वास्तविक जीवन पर हावी हो गया। खोजा जाए इलाज

दुनिया में नशीले पदार्थों का कारोबार जिस तेजी से फैल रहा है, उससे कहीं अधिक रफ्तार से लोग सोशल मीडिया की गिरफ्त में फंस रहे हैं। युवाओं के अलावा बच्चे भी अब डिजिटल लत का शिकार हो रहें हैं। अमेरिका सहित कई देशों में तो इसके इलाज के लिए बाकायदा क्लीनिक भी खुल गए हैं, लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों में अभी तक इस पहलू पर गंभीरता से सोचा ही नहीं गया है। वक्त आ गया है जब इसका समाधान तलाशा जाए, नहीं तो युवा शक्ति विकास के बजाय विनाश पर उतारू हो सकती है।

सीबीएसई-खतरे में साख


दसवीं और बारहवीं कक्षा के प्रश्नपत्र लीक होने से सीबीएसई की साख को गहरा धक्का लगा है। बारहवीं की अर्थशास्त्र की परीक्षा 26 मार्च को हुई थी, जबकि 10 वीं कक्षा की गणित की परीक्षा 28 मार्च को। परीक्षा से पहले ही हाथ से लिखे सवाल वाट्सएप पर शेयर हो रहे थे। पेपर में भी वही सवाल आए। लेकिन सीबीएसई दावा करता रहा कि पेपर लीक नहीं हुए हैं। इससे पहले 15 मार्च को 12 वीं के अकाउंट्स का पेपर लीक होने की खबर थी। सीबीएसई ने उससे इनकार कर दिया था। अब बीते बुधवार को सीबीएसई ने पेपर लीक की बात स्वीकार करते हुए बारहवीं के अर्थशास्त्र और दसवीं के गणित की परीक्षा दोबारा कराने का फैसला किया है। लेकिन अब कई छात्रों ने पूरी परीक्षा फिर से कराए जाने की मांग को लेकर प्रदर्शन शुरू कर दिया है। देश भर के छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों में इसे लेकर भारी गुस्सा है। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने मामले की जांच एसआईटी को सौंप दी है। इस सिलसिले में एक कोचिंग संचालक को गिरफ्तार भी किया गया है। सवाल है कि कोई भी पेपर बोर्ड के अंदर के किसी व्यक्ति की मिलीभगत के बगैर बाहर कैसे आ सकता है/ अगर ऐसा नहीं है तो किसी स्तर पर जरूर लापरवाही हुई है। गौरतलब है कि पेपर सेट करने के लिए विशेषज्ञों की मदद ली जाती है। ये विशेषज्ञ एक-दूसरे से अनजान होते हैं। पेपर सेट होने के बाद उन्हें मॉडरेटर के पास भेजा जाता है जो सिलेबस और कठिनाई की जांच करते हैं। फिर पेपर को ट्रांसलेशन के लिए भेजा जाता है और इसके बाद उन्हें छपने भेजा जाता है। छपे हुए पेपर एक जगह स्टोर करके रखे जाते हैं फिर उन्हें कलेक्शन सेंटर पर भेजा जाता है। इस प्रक्रिया में कहीं भी थोड़ी ढिलाई से लीक संभव है। क्या इस बात की जांच की जाएगी कि कहां गड़बड़ी हुई/ क्या दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होगी/ ऐसे समय जब राज्यों के बोर्ड अनियमितता के कारण कठघरे में खड़े किए जा रहे थे, सीबीएसई ने अपनी पारदर्शिता और पेशेवराना रवैये से अपनी प्रतिष्ठा कायम की थी। पिछले कुछ वर्षों में यह अच्छी शिक्षा और अच्छे करियर के पर्याय के रूप में उभरकर आया, लेकिन पेपर लीक ने इसकी विश्वसनीयता पर गहरी चोट पहुंचाई है। कहीं ऐसा तो नहीं कि तकनीक के बढ़ते प्रसार और उनकी व्यापक उपलब्धता ने हमारी मौजूदा व्यवस्थाओं को बेजान बना दिया है/ जाहिर है अब हमें पहले से कहीं बेहतर और अत्याधुनिक तंत्र की जरूरत है। क्या सरकार इस प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए एक सक्षम तंत्र बनाएगी/ फिर इस पर भी विचार करना चाहिए कि कहीं हमारी शिक्षा प्रणाली अंकों का एक खेल बनकर तो नहीं रह गई है/ शिक्षा के स्वरूप में व्यापक बदलाव की पहलकदमी भी सीबीएसई को करनी चाहिए।

ଦାଗୀ ନେତା ଓ ବିଳମ୍ବିତ ନ୍ୟାୟ

ବଳରାମ ସାହୁ/ ଏକ ଗଣତାନ୍ତ୍ରିକ, ଲୋକାଭିମୁଖୀ ଉତ୍ତରଦାୟୀ ସରକାରରେ ବିଳମ୍ବିତ ନ୍ୟାୟ ସାଧାରଣ ନାଗରିକଙ୍କ ମନରେ ଗଣତାନ୍ତ୍ରିକ ବ୍ୟବସ୍ଥା ପ୍ରତି ଯେ ଅନାସ୍ଥା ସୃଷ୍ଟି କରେ ତାହା ନୁହେଁ, ବରଂ ପରୋକ୍ଷରେ ଅପରାଧୀମାନଙ୍କର ଆପରାଧିକ ମନୋବୃତ୍ତିକୁ ପ୍ରୋତ୍ସାହିତ କରିଥାଏଦେଶରେ ଜନସଂଖ୍ୟା ବଢ଼ିବା ସଙ୍ଗେ ସଙ୍ଗେ ଅପରାଧୀମାନେ ଆଧୁନିକ ଢଙ୍ଗରେ ଅପରାଧ ଘଟାଇ ଚାଲିଛନ୍ତିନ୍ୟାୟାଳୟର ଅନିୟନ୍ତ୍ରିତ ଭିଡ଼ ମଧ୍ୟରେ ପୀଡିତ ବ୍ୟକ୍ତି ନ୍ୟାୟ ପାଇବା କାଠିକରପାଠନ୍ୟାୟାଳୟରେ ଯେ କେବଳ ପେସାଦାର ଅପରାଧୀମାନଙ୍କର ଆପରାଧିକ ମାମଲାର ଅନିୟନ୍ତ୍ରିତ ଭିଡ ତାହା ନୁହେଁ, ଯେଉଁମାନଙ୍କୁ ଆମେ ନିଜର ବହୁମୂଲ୍ୟ ଗଣତାନ୍ତ୍ରିକ ଅଧିକାର ସାବ୍ୟସ୍ତ କରି ସଂସଦ ବିଧାନସଭାକୁ ପଠାଇଛୁ, ସେମାନଙ୍କ ନାମରେ ୧୩,୫୦୦ ମକଦ୍ଦମା ବିଭିନ୍ନ ବିଚାରାଳୟରେ ବିଚାର ପାଇଁ ପଡିରହିଛିସଦ୍ୟ ଏକ ରିପୋର୍ଟ ଅନୁସାରେ ଦେଶର ସମସ୍ତ ୪୦୭୦ ବିଧାୟକଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ୧୩୫୩ ଜଣ ବିଭିନ୍ନ ମାଲିମକଦ୍ଦମାରେ ଅଭିଯୁକ୍ତସେହିପରି ୭୯୦ ସାଂସଦଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ୨୨୮ଜଣଙ୍କ ନାମରେ ବିଭିନ୍ନ ମକଦ୍ଦମା ଚାଲୁ ରହିଛିଗୁଜରାଟର ୧୮୨ ଜଣ ବିଧାୟକଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ୪୩ ହିମାଚଳପ୍ରଦେଶର ୬୮ ଜଣଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ୨୨ ଜଣଙ୍କ ନାମରେ ବିଭିନ୍ନ ନ୍ୟାୟାଳୟରେ ଆପରାଧିକ ମାମଲା ଚାଲିଛିପ୍ରାୟ ୧୩,୫୦୦ ମାମଲା ମଧ୍ୟରୁ ହତ୍ୟା, ହତ୍ୟା ପାଇଁ ଉଦ୍ୟମ, ବଳାତ୍କାର, ଲୁଣ୍ଠନ ଆଦି ୯୯୩ ମାମଲା ମଧ୍ୟ ଏହି ଅଭିଯୁକ୍ତ ନେତାମାନଙ୍କ ନାମରେ ରହିଛିସାଧାରଣ ଲୋକେ ଚାହାନ୍ତି, ନିର୍ବାଚିତ ଜନପ୍ରତିନିଧି ସଂସଦ କିମ୍ବା ବିଧାନସଭାରେ ତାଙ୍କ ସମସ୍ୟାକୁ ଠିକ୍ଭାବେ ଉପସ୍ଥାପିତ କରି ସମାଧାନର ପ୍ରୟାସ କରନ୍ତୁଦାଗୀ ହୋଇ କାଠଗଡାରେ ଠିଆହୋଇ ସମ୍ମାନହାନି କରନ୍ତୁକିନ୍ତୁ ରାଜନୈତିକ ଦଳଗୁଡିକ ବାହୁବଳୀ ଅଭିଯୁକ୍ତ ନେତାମାନଙ୍କୁ ନିର୍ବାଚନରେ ଲଢ଼ିବା ପାଇଁ ଟିକେଟ ଦେଉଛନ୍ତିଫଳରେ ଦେଶର ସଚ୍ଚୋଟ ଗୁଣୀ ବ୍ୟକ୍ତିମାନେ ରାଜନୀତିରେ ପ୍ରବେଶକରି ସେବା କରିବାର ସୁଯୋଗ ପାଉନାହାନ୍ତିତେବେ ଲଙ୍କାରେ ହରିଧ୍ୱନି ସଦୃଶ ଉତ୍ତରପ୍ରଦେଶର ସମାଜବାଦୀ ପାର୍ଟି ୨୦୧୯ ସାଧାରଣ ନିର୍ବାଚନରେ କୌଣସି ଅଭିଯୁକ୍ତଙ୍କୁ ଦଳୀୟ ଟିକେଟ ଦେବନାହିଁ ବୋଲି ଘୋଷଣା କରିଛିଅନ୍ୟ ରାଜନୈତିକ ଦଳଙ୍କ ପାଇଁ ଏହା ଉଦାହରଣ ସୃଷ୍ଟି କରିବରାଜନୀତିରେ ବିପୁଳ ସଂଖ୍ୟକ ଅପରାଧୀଙ୍କ ଅବାଧ ପ୍ରବେଶ ବାହୁବଳୀ ନେତାମାନଙ୍କର ଆଧିପତ୍ୟରୁ ଭାରତୀୟ ରାଜନୀତିକୁ ମୁକ୍ତ କରିବା ପାଇଁ ମାନ୍ୟବର ସୁପ୍ରିମକୋର୍ଟ ଏବେ ଅଣ୍ଟା ଭିଡିଛନ୍ତିସାଧାରଣ ନିର୍ବାଚନ ପୂର୍ବରୁ ଜନପ୍ରତିନିଧି ଆଇନକୁ ସମ୍ମାନ ଦେଇ ନିର୍ବାଚନ ପୂର୍ବରୁ ୧୨ଟି ଫାଷ୍ଟଟ୍ରାକ୍କୋର୍ଟ ଦ୍ୱାରା ଅଭିଯୁକ୍ତ ନେତାମାନଙ୍କର ବିଚାର ସମାପ୍ତ କରିବାକୁ ପ୍ରୟାସ କରାଯାଉଛିଡିସେମ୍ବର ୧୭ ତାରିଖରେ ମାନ୍ୟବର ସୁପ୍ରିମ୍କୋର୍ଟର ନ୍ୟାୟାଧୀଶ ରଞ୍ଜନ ଗୋଗୋଇ ନବୀନ ସିହ୍ନାଙ୍କୁ ନେଇ ଗଠିତ ଖଣ୍ଡପୀଠ ୨ଟି ଫାଷ୍ଟଟ୍ରାକ୍କୋର୍ଟ ଦ୍ୱାରା ୨୨୮ଜଣ ଅଭିଯୁକ୍ତ ସାଂସଦ ୧୦ଟି ଫାଷ୍ଟଟ୍ରାକ୍କୋର୍ଟ ଦ୍ୱାରା ଅଧିକ ଅପରାଧପ୍ରବଣ ରାଜ୍ୟ ଯଥା-ପଶ୍ଚିମବଙ୍ଗ, ଆନ୍ଧ୍ରପ୍ରଦେଶ, ବିହାର, କର୍ନାଟକ, ମଧ୍ୟପ୍ରଦେଶ, ମହାରାଷ୍ଟ୍ର, ତାମିଲନାଡୁ, କେରଳ, ଉତ୍ତରପ୍ରଦେଶ ତେଲେଙ୍ଗାନାର ଅଭିଯୁକ୍ତ ବିଧାୟକମାନଙ୍କର ତୁରନ୍ତ ବିଚାର କରିବାକୁ ଚେଷ୍ଟିତ କଥା ସତ୍ୟ ଯେ, ବେଳେବେଳେ ରାଜନୈତିକ ବ୍ୟକ୍ତିବିଶେଷଙ୍କ ଦୋଷ ଥାଇ ମଧ୍ୟ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ ଦଳର ନେତାମାନେ ମିଥ୍ୟା ମାମଲାରେ ତାଙ୍କୁ ଫସେଇଥାନ୍ତିନିକଟରେ ପ୍ରକାଶିତ ୨ଜି ଦୁର୍ନୀତିରେ ତାମିଲନାଡୁର କାନିମୋଝି ଟି. ରାଜାଙ୍କୁ କ୍ଲିନ୍ଚିଟ୍ମିଳିବା ତଥା ମହାରାଷ୍ଟ୍ରର ଆଦର୍ଶ ହାଉସିଂ ମାମଲାରେ ତତ୍କାଳୀନ ମୁଖ୍ୟମନ୍ତ୍ରୀ ଅଶୋକ ଚୌହାନଙ୍କୁ ସିବିଆଇ କୋର୍ଟ ନିର୍ଦ୍ଦୋଷ ପ୍ରମାଣିତ କରିବା ଘଟଣା ପୋଲିସ, କ୍ରାଇମବ୍ରାଞ୍ଚ ସିବିଆଇ ଭଳି ଉଚ୍ଚପଦସ୍ଥ ଅଫିସରଙ୍କ ନିରପେକ୍ଷତା ଆଡକୁ ଅଙ୍ଗୁଳି ନିର୍ଦ୍ଦେଶ କରେଏହାସତ୍ତ୍ୱେ ସାଧାରଣ ନିର୍ବାଚନ ପୂର୍ବରୁ ଫାଷ୍ଟଟ୍ରାକ୍କୋର୍ଟ ପ୍ରତିଷ୍ଠା ହୋଇ ଅଭିଯୁକ୍ତ ନେତାମାନଙ୍କର ଯଦି ତୁରନ୍ତ ବିଚାର ହୋଇପାରେ ତେବେ ତାହା ସ୍ବାଗତଯୋଗ୍ୟ ହେବଲୋକେ ମାନ୍ୟବର ସୁପ୍ରିମକୋର୍ଟଙ୍କ ଯୁଗାନ୍ତକାରୀ ପଦକ୍ଷେପକୁ ଲୋକଦେଖାଣିଆ ବା ଅସମ୍ଭବ କହି ସମାଲୋଚନା କରୁଥିବାବେଳେ ମାତ୍ର ୫୨ଦିନ ମଧ୍ୟରେ ମଧ୍ୟପ୍ରଦେଶର ଗଣବଳାତ୍କାର ଘଟଣାର ଦୋଷୀଙ୍କୁ ଦଣ୍ଡବିଧାନ କରି ଜଷ୍ଟିସ ସବିତା ଦୁବେ ନ୍ୟାୟାଳୟ ଦ୍ୱାରା ଯେ ଶୀଘ୍ର ଫଇସଲା ସମ୍ଭବ, ତାହା ପ୍ରମାଣ କରିଛନ୍ତିକେବଳ ବିଚାରପତି ନୁହନ୍ତି, ତଦନ୍ତକାରୀ ଅଫିସର ବା ସଂସ୍ଥା ଉଭୟପକ୍ଷ ଓକିଲଙ୍କ ସହଯୋଗରେ ତୁରନ୍ତ ନ୍ୟାୟ ପ୍ରଦାନ ମଧ୍ୟ ସମ୍ଭବ ହୋଇପାରିବଯେଉଁମାନେ ନିରାଶ ହୋଇ ଏହା ସମ୍ଭବ ନୁହେଁ ବୋଲି କହି ଗଣତାନ୍ତ୍ରିକ ପ୍ରକ୍ରିୟା ଉପରୁ ନିଜର ବିଶ୍ୱାସ ହରାଇ ବସୁଛନ୍ତି, ସେମାନେ ଏତଦ୍ଦ୍ବାରା ସେମାନଙ୍କର ଦୃଢ଼ ବିଶ୍ୱାସ ଫେରିପାଇବେ

ବୁଢ଼ୀ ଅସୁରୁଣୀ

  ଶୈଶବରେ ଆମମାନଙ୍କ ଭିତରୁ ଯେଉଁମାନେ ସେମାନଙ୍କ ଜେଜେ ମା ’ ବା ଆଈମାନଙ୍କ ଠାରୁ ବୁଢ଼ୀ ଅସୁରୁଣୀ ଗପ ଶୁଣିଛନ୍ତି , ସେମାନେ ଅନେକ ସମୟରେ ଚକିତ ହେ...