Thursday, 23 November 2017

हुक-अप कल्चर के साइड इफेक्ट्स



यौन संबंधों के खुलेपन ने पश्चिमी देशों में हुक-अप कल्चर को जन्म दिया है। इसका अर्थ है बिना किसी भावनात्मक संबंध या दीर्घकालीन जिम्मेदारी के किसी से भी यौन संबंध स्थापित करना, फिर चाहे वह बिल्कुल अजनबी ही क्यों न हो। हुक-अप कल्चर में ऐसे भी उदाहरण रहते हैं कि जिन दो पार्टनर्स में सेक्स रिलेशन बना, वे एक-दूसरे का पता तो क्या, नाम तक नहीं जानते। अजनबी पार्टनर ज्यादातर पार्टियों, पबों और बारों में मिल जाते हैं। इसके लिए प्रायः ‘कैजुअल सेक्स और ‘वन नाइट स्टैंड का उपयोग किया जाता है लेकिन इन दोनों में एक बारीक भिन्नता है। रातभर में जब-तब कुछ भावनात्मक रिश्ते भी बन जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार कुछ पश्चिमी देशों में लगभग 50 प्रतिशत वयस्क हुक-अप कल्चर के कम से कम एक अनुभव से गुजर चुके हैं। कुछ विश्वविद्यालयों में इसका प्रचलन अधिक है।


हुक-अप की शुरुआत तो शारीरिक सुख पाने के लिए की गई पर इसका कल्चर फैलने के कुछ समय बाद ही गंभीर समस्याएं सामने आने लगीं। जैसे डिप्रेशन और मानवीय संबंधों में बढ़ता खोखलापन। शुरू में केवल धार्मिक संगठनों ने नैतिक आधार पर इसका विरोध किया पर अब वैज्ञानिक तर्क व अध्ययन के आधार पर भी इसकी मुखालफत होने लगी है। बाहरी तौर पर यह प्रवृत्ति लोगों को आकर्षक लगती है इसलिए यह चिंता बढ़ रही है कि कहीं विकासशील व निर्धन देशों में भी देखादेखी इसका प्रसार न बढ़ जाए। सचाई यह है कि अपने यहां भी कुछेक दायरों में इसका प्रचलन शुरू हो चुका है।


पश्चिमी समाज में हुक-अप कल्चर की जमीन पहले से तैयार हो रही थी। एक से अधिक पार्टनर की प्रवृत्ति को वहां विभिन्न देशों में सामाजिक मान्यता मिलने लगी थी। ब्रिटेन के नैशनल सर्वे ऑफ सेक्शुअल ऐटिट्यूड्स ऐंड लाइफ स्टाइल में पुरुष के जीवनकाल में औसतन 11.7 और महिलाओं के औसतन 7.7 पार्टनर होने की बात कही गई पर इसमें अतिशयोक्ति हो सकती है। सामान्यतः 7 से 5 पार्टनर होने की संभावना अधिक व्यापक तौर पर उपस्थित है। स्वीडन के एक सर्वेक्षण में 55 वर्ष आयुवर्ग के आसपास के पुरुषों में से 14 प्रतिशत ने जीवनकाल में 30 या अधिक पार्टनर होने की बात कही। वहां के एक विश्वविद्यालय ने छात्राओं के सर्वेक्षण के बाद बताया कि पहले किए गए सर्वेक्षण की अपेक्षा पार्टनर दोगुना बढ़े हैं और अभी औसत पार्टनर संख्या 11 है। इस तरह मल्टी-पार्टनर कल्चर को जो स्वीकृति पहले से मिली थी उससे ही हुक-अप कल्चर का तेज प्रसार हो सका।

इसके लिए मुख्य औचित्य यह दिया गया कि जब दो वयस्क आपसी स्वीकृति से बने संबंध में प्रसन्नता प्राप्त कर रहे हैं तो इसपर किसी को आपत्ति नहीं करनी चाहिए। इतना ही नहीं, यह दावा भी दिया गया कि ऐसा माहौल बनने से यौन हिंसा अपने आप कम हो जाएगी। पर शीघ्र ही इस विषय पर हुए अनेक अनुसंधानों से ये मिथक टूटने लगे। कुछ अध्ययनों में यह सामने आया कि कुछ हुक-अप बाहरी तौर पर भले ही सहमति के लगें पर शराब, नशीली दवाओं व तरह-तरह की चालाकियों के उपयोग से इनमें स्थिति प्रायः यौन शोषण वाली ही बन जाती है। लिजा वेड नामक अनुसंधानकर्ता ने विशेषकर विश्वविद्यालय परिसरों के संदर्भ में हुक-अप पर लिखी अपनी पुस्तक में बताया कि महिला चाहे अपनी मर्जी से आई हो लेकिन एक बार फंस जाने पर उसकी मर्जी के बिना भी बहुत कुछ होता है। हुक-अप की वारदात के बाद पार्टनरों ने, विशेषकर महिलाओं ने डिप्रेशन, आत्मग्लानि, शर्म और भावनात्मक समस्याओं से गुजरने की शिकायत की। हुक-अप में वृद्धि के बाद यौन-हिंसा अनेक स्थानों पर कम होने के बजाय और बढ़ गई।

अमेरिका में हर तीन में से एक किशोरी डेटिंग के समय अपने पार्टनर से किसी न किसी तरह की हिंसा का शिकार हुई। वहां एक वर्ष में बलात्कार व सेक्शुअल असॉल्ट के औसतन 3,21,500 मामले दर्ज होते हैं। बाल यौन शोषण की दर भी वहां बहुत अधिक है। सामान्य यौन हमलों में 70 प्रतिशत व बाल यौन अपराधों में 90 प्रतिशत से ज्यादा अपराधी महिलाओं व बच्चों की जान-पहचान के होते हैं। स्वीडन के जिस विश्वविद्यालय में पार्टनर दोगुने होने का परिणाम सामने आया, उसी सर्वेक्षण ने यौन संक्रमण रोग दोगुने होने की पुष्टि भी की। वर्ष 2015 में अमेरिका में इनके लगभग दो करोड़ नए केस सामने आए। नॉर्डिक सेंटर फॉर वेलफेयर ऐंड सोशल इशूज ने स्वीडन के युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के अध्ययन में बताया कि वर्ष 1980 से 2003 के बीच 15 से 19 वर्ष आयु वर्ग की किशोरियों में डिप्रेशन का इलाज करवाने वालों की संख्या आठ गुनी बढ़ गई।

इस तरह की स्डटीज से पता चलता है कि आत्मीय व भावनात्मक संबंधों की जगह यदि मात्र दैहिक रिश्तों को महत्व दिया जाए तो इससे भावनात्मक स्तर पर खोखलापन आता है जिससे मानसिक समस्याएं बढ़ सकती हैं। इससे महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट मानने की प्रवृत्ति बढ़ती है जिससे यौन हिंसा में भी वृद्धि होती है। हुक-अप कल्चर के भारत जैसे विकासशील देशों में फैलने की आशंका भी बनी हुई है क्योंकि कुछ लोग नकल में इसे अपना रहे हैं। कुछ इसे स्वतंत्रता और आधुनिकता का पर्याय बताते हैं पर इसकी परिणति देख लेने के बाद भी इसे अपनाने का कोई अर्थ नहीं है। जरूरी है कि इस संबंध में वास्तविक स्थिति लोगों के सामने आए। इसके लिए समाज के प्रबुद्ध तबके को आगे आना होगा।
        लेखक: भारत डोगरा       

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