Wednesday, 31 January 2018

जालसाजों का जाल




ल्ली में फर्जी डिग्री रैकेट का खुलासा वाकई हैरान-परेशान करने वाली खबर हैहरिनगर इलाके में बिल्कुल व्यवस्थित तरीके से देश भर में इस गैंग का काम चल रहा था और पुलिस-प्रशासन अनभिज्ञ बनी रहीगैंग इस कदर अतिआत्मविास में था कि बकायदा देश भर के अखबारों में डिग्री मुहैया कराने का विज्ञापन देती थी और यह गोरखधंधा पिछले तीन साल से बेरोकटोक जारी थाऐसा नहीं है कि फर्जी डिग्री बेचने का यह खेल नया हैइससे पहले भी इस तरह की कई साजिशें बे-पर्दा हो चुकी हैंदिल्ली सरकार के ही एक मंत्री को फर्जी डिग्री के मामले में गिरफ्तार तक किया जा चुका हैलेकिन लचर कानून-व्यवस्था के चलते ये चालबाज और शातिर किस्म के लोग फिर से फरेब के जाल में लोगों को फांसने के लिए जाते हैंइस बार गिरफ्तार किया गया पवित्तर सिंह 2014 में पुलिस के हत्थे चढ़ चुका हैलेकिन जेल से बाहर आकर उसने एक बार फिर इसी धंधे में हाथ आजमायाचूंकि फर्जी डिग्री के मामले में कानून के मुताबिक 10 साल की सजा का प्रावधान है, लेकिन आमतौर पर अदालत ट्रायल के दौरान आरोपित को जमानत दे देती हैइस नियम में बदलाव जरूरी हैदूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि डिग्री प्रोवाइड करने वाली जो भी एजेंसी, संस्थान या अनुशासनात्मक बोर्ड है; वहां नियमित और आवश्यक रूप से एक ‘‘डिग्री वेरीफिकेशन डेस्क का गठन होना चाहिएक्योंकि नौकरियों के लोग जब संस्थान में डिग्री या अन्य दस्तावेज पेश करते हैं तो यह पता लगाने का कोई उपक्रम या जरिया नहीं होता कि पेश दस्तावेज असली हैं या नकलीहोना तो यह भी चाहिए कि जो भी संस्थान बिना दस्तावेजों की गहनता से पड़ताल करके अपने यहां किसी को नौकरी पर रखेगी, उनके खिलाफ भी धारा 420 के तहत मामले दर्ज होने चाहिएसाथ ही प्रशासन को इन फर्जी डिग्री की मदद से अहम जगहों पर नौकरी कर रहे लोगों की तलाश कर उन्हें सामने लाना होगाहालांकि यह बेहद दुष्कर कार्य है मगर इस गैंग के 30 से ज्यादा बैंक खातों की जांच में डिग्री खरीदने वालों की पहचान की जा सकती हैयह चौंकाने वाली वारदात हर किसी के लिए सबक हैखासकर उन लोगों के लिए जो जिंदगी में कुछ भी पाने के लिए शार्टकट अपनाते हैंचुनांचे; सही-गलत की समझ और सबसे बड़ी जिम्मेदारी जनता-जनार्दन की ही है

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