ल्ली में फर्जी डिग्री रैकेट का खुलासा वाकई हैरान-परेशान करने वाली खबर है। हरिनगर इलाके में बिल्कुल व्यवस्थित तरीके से देश भर में इस गैंग का काम चल रहा था और पुलिस-प्रशासन अनभिज्ञ बनी रही। गैंग इस कदर अतिआत्मविास में था कि बकायदा देश भर के अखबारों में डिग्री मुहैया कराने का विज्ञापन देती थी और यह गोरखधंधा पिछले तीन साल से बेरोकटोक जारी था। ऐसा नहीं है कि फर्जी डिग्री बेचने का यह खेल नया है। इससे पहले भी इस तरह की कई साजिशें बे-पर्दा हो चुकी हैं। दिल्ली सरकार के ही एक मंत्री को फर्जी डिग्री के मामले में गिरफ्तार तक किया जा चुका है। लेकिन लचर कानून-व्यवस्था के चलते ये चालबाज और शातिर किस्म के लोग फिर से फरेब के जाल में लोगों को फांसने के लिए आ जाते हैं। इस बार गिरफ्तार किया गया पवित्तर सिंह
2014 में पुलिस के हत्थे चढ़ चुका है। लेकिन जेल से बाहर आकर उसने एक बार फिर इसी धंधे में हाथ आजमाया। चूंकि फर्जी डिग्री के मामले में कानून के मुताबिक 10 साल की सजा का प्रावधान है, लेकिन आमतौर पर अदालत ट्रायल के दौरान आरोपित को जमानत दे देती है। इस नियम में बदलाव जरूरी है। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि डिग्री प्रोवाइड करने वाली जो भी एजेंसी, संस्थान या अनुशासनात्मक बोर्ड है; वहां नियमित और आवश्यक रूप से एक ‘‘डिग्री वेरीफिकेशन डेस्क’ का गठन होना चाहिए। क्योंकि नौकरियों के लोग जब संस्थान में डिग्री या अन्य दस्तावेज पेश करते हैं तो यह पता लगाने का कोई उपक्रम या जरिया नहीं होता कि पेश दस्तावेज असली हैं या नकली। होना तो यह भी चाहिए कि जो भी संस्थान बिना दस्तावेजों की गहनता से पड़ताल न करके अपने यहां किसी को नौकरी पर रखेगी, उनके खिलाफ भी धारा 420
के तहत मामले दर्ज होने चाहिए। साथ ही प्रशासन को इन फर्जी डिग्री की मदद से अहम जगहों पर नौकरी कर रहे लोगों की तलाश कर उन्हें सामने लाना होगा। हालांकि यह बेहद दुष्कर कार्य है मगर इस गैंग के 30 से ज्यादा बैंक खातों की जांच में डिग्री खरीदने वालों की पहचान की जा सकती है। यह चौंकाने वाली वारदात हर किसी के लिए सबक है। खासकर उन लोगों के लिए जो जिंदगी में कुछ भी पाने के लिए शार्टकट अपनाते हैं। चुनांचे; सही-गलत की समझ और सबसे बड़ी जिम्मेदारी जनता-जनार्दन की ही है।
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