Friday, 23 March 2018

शिक्षक की गरिमा


दिल्ली के एक नामी प्राइवेट स्कूल की नौवीं की छात्रा पिछले दिनों जिस प्रक्रिया में खुदकुशी की ओर गई, उसके ब्यौरे रोंगटे खड़े कर देने वाले हैं। 15 साल की वह लड़की अपने एक शिक्षक द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायत कर रही थी। उसका कहना था कि संबंधित टीचर उसे फेल कर देंगे। बावजूद इसके, उसकी शिकायतों को न उसके परिवार ने, न ही स्कूल ने इतनी गंभीरता से लिया कि उसे इस जाल से निकल पाने का भरोसा मिलता। रिजल्ट निकलने के बाद अपना नाम फेल स्टूडेंट्स की लिस्ट में पाकर उसने खुदकुशी कर ली। दिल्ली में ही लगभग इसी तरह का मसला जेएनयू में उभरा है, जहां इस पर राजनीति का भी गहरा रंग चढ़ा हुआ है। एक प्रफेसर द्वारा अपनी रिसर्च स्कॉलर्स पर यौन संबंधों के लिए दबाव बनाना, राजी न होने पर रिसर्च में रोड़े अटकाना और बात सामने आ जाने के बाद इस पर राजनीतिक दांव-पेंच शुरू होना भारत को सभ्य समाजों की सूची से बाहर करने के लिए काफी है। बड़े फलक पर देखें तो हमारे देश में जहां कहीं भी पुरुष को ऐसी ताकत हासिल है कि वह किसी महिला या लड़की के हितों को प्रभावित कर सके, वहीं इसके दुरुपयोग की घटनाएं देखी जा रही हैं। इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि शिकायत मिलने के बाद भी उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता। दिल्ली के दोनों हालिया मामलों पर वापस लौटें तो चाहे नौवीं की छात्रा के पिता और उसका स्कूल प्रशासन हो, या जेएनयू जैसी आला यूनिवर्सिटी के जिम्मेदार लोग, हर जगह ऐसा ही रवैया दिखता है। सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख के बाद ऑफिसों और कार्यस्थलों में महिलाओं को सुरक्षित माहौल देने की कुछ कोशिशें हुई हैं, हालांकि इनके अमल पर भी नियमित नजरदारी की कोई व्यवस्था नहीं बन पाई है। अच्छा होगा कि इस तरह के उपाय सभी शिक्षण संस्थानों में भी किए जाएं। हर जगह लड़कियों की शिकायत सुनने और दर्ज करने के लिए कोई संस्था हो, जो शिकायत की सचाई भी जांचे, पर शिकायतकर्ता को आरोपी के इकतरफा दबदबे से तत्काल मुक्त किया जाए। आरोपी चाहे टीचर हो, कोच हो, कला गुरु हो या कोई और, यह पक्का किया जाए कि जांच पूरी होने तक शिकायतकर्ता के मार्क्स और करियर पर उसका एकछत्र राज न हो। गुरु-शिष्य का संबंध विश्वास और सम्मान की डोर से जुड़ा होता है। माता-पिता से भी ऊंचा स्थान गुरु को दिया गया है। जिस गुरु की छत्रछाया में शिष्य जीवन के सबक सीखता है, आज उस गुरु का अपने शिष्यों के प्रति वासनायुक्त व्यवहार समाज में पनपती दिशाहीनता का नमूना है। यह अच्छी बात है कि विद्यालय हो या धर्मगुरुओं के आश्रम, गुरुओं की वासनायुक्त छवि मीडिया में खुलकर सामने आने लगी है। ऐसे शिक्षकों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए, जो ऐसी मानसिकता से ग्रसित अन्य लोगों के लिए भी उदाहरण का काम करे। समाज के भविष्य निर्माता कहलाने वाले कुछ शिक्षक अपने दूषित विचारों से समाज को गर्त की ओर ले जा रहे हैं। ऐसे में जो स्वयं को संयमित रखने में नाकाम हैं, वे शिक्षक पद के लिए कदापि उपयुक्त नहीं हैं।

No comments:

Post a Comment

ବୁଢ଼ୀ ଅସୁରୁଣୀ

  ଶୈଶବରେ ଆମମାନଙ୍କ ଭିତରୁ ଯେଉଁମାନେ ସେମାନଙ୍କ ଜେଜେ ମା ’ ବା ଆଈମାନଙ୍କ ଠାରୁ ବୁଢ଼ୀ ଅସୁରୁଣୀ ଗପ ଶୁଣିଛନ୍ତି , ସେମାନେ ଅନେକ ସମୟରେ ଚକିତ ହେ...