Thursday 18 July 2019

जैसे कोई महामारी -बच्चों का यौन शोषण


    हमारे लिए इससे शर्मनाक बात और क्या होगी कि भारत में बच्चों के यौन उत्पीड़न की घटनाएं कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही हैंइस मामले में सिस्टम की नाकामी देखकर न्यायपालिका को सामने आना पड़ा हैसुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के साथ बलात्कार के मामलों पर शुक्रवार को स्वतः संज्ञान लियाकोर्ट की एक खंडपीठ ने कहा कि इस साल एक जनवरी से 30 जून के बीच देश भर में बच्चों के बलात्कार से जुड़े मामलों में 24,212 एफआईआर दर्ज हुई हैंइनमें 11,981 मामलों की जांच की जा रही है और 12,231 में चार्जशीट दायर की जा चुकी हैसुनवाई सिर्फ 6,449 मामलों में शुरू हो पाई हैनिचली अदालतों ने अब तक 911 मामलों पर फैसला लिया है, जो कुल दर्ज मामलों का लगभग चार फीसदी हैअदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता वी गिरी से इस मामले में एमिकस क्यूरी (न्यायमित्र) के तौर पर सहयोग करने को कहावी गिरी ने अपनी रिपोर्ट में अदालत को बताया कि पॉक्सो एक्ट के प्रावधान लागू करने में सरकारें फिसड्डी साबित हुई हैंऐसे मामलों में जांच जल्दी पूरी कर दोषियों को सख्त सजा देने के लिए स्पेशल पॉक्सो कोर्ट स्थापित करनी होगी और स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त करने होंगेसचाई यह है कि कानून सख्त किए जाने के बावजूद अपराधियों में उसका कोई खौफ नहीं पैदा हो सका हैहमारा तंत्र सक्षम नहीं है इसलिए ऐसे मामलों में अपराध साबित होने की दर बहुत कम हैनेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 मेंपॉक्सो ऐक्ट के तहत बच्चों से बलात्कार के 64,138 मामले दर्ज हुए थे जिनमें सिर्फ 3 प्रतिशत में अपराध साबित हुआनाबालिग लड़कियों के साथ बलात्कार के 94 फीसदी मामलों में अपराधी पीड़िता का करीबी या जान-पहचान वाला थामासूम बच्चे अक्सर अपराधी की नीयत नहीं पहचान पातेलेकिन थोड़ा बड़े बच्चे भी इनके शिकार हो जाते हैं क्योंकि हमारे सामाजिक ढांचे में दूर के रिश्तेदारों और पड़ोसियों पर बेधड़क भरोसे का चलन हैबच्चों को अच्छे और बुरे बर्ताव में फर्क करने और किसी संभावित हादसे से बचने का प्रशिक्षण देने की बात आज भी सहज लोकाचार के खिलाफ समझी जाती हैइस अंधे कुएं से बाहर आने के लिए स्कूलों में यौन शिक्षा देने का प्रस्ताव रखा गया लेकिन समाज का एक तबका नैतिकता की दुहाई देकर इसका विरोध करता हैइसके चलते यह स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं बन पाईजाहिर है, हमारे पास समस्या से निपटने के लिए पर्याप्त मशीनरी नहीं हैलेकिन इससे बुरी बात यह कि हम इसे खुली आंखों देखने को ही तैयार नहीं हैंमशीनरी पर लौटें और मान लें कि फास्ट ट्रैक कोर्ट बन जाएंगेलेकिन उनमें बैठने के लिए जज कहां से आएंगे/ इस सामाजिक महामारी से निजात पाने के लिए बच्चों-अभिभावकों को जागरूक बनाना होगा, सामाजिक संस्थाओं को प्रोत्साहन देना होगा, और ऐसे हर संभव उपाय करने होंगे जिससे जानवर जेहनियत वाले लोग कुछ करने से पहले हिचकें

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