हरियाणा सरकार ने
अब बच्चियों से
बलात्कार का दोषी
पाए जाने पर फांसी की
सजा देने का रास्ता साफ
कर दिया है।
प्रदेश में नाबालिगों,
खासतौर से छोटी बच्चियों के साथ दरिंदगी की बढ़ती घटनाओं से
हलकान सरकार ने
कुछ दिन पहले
कैबिनेट की बैठक में यह
फैसला किया था।
गुरुवार को विधानसभा
ने इस विधेयक
को मंजूरी दे
दी। हालांकि हरियाणा
में लगातार बलात्कार
की घटनाओं के
मद्देनजर इस गंभीर
समस्या पर काबू पाने के
मकसद से किसी सख्त कदम
की जरूरत काफी
पहले से महसूस
की जा रही थी। अब
वहां जिस विधेयक
को मंजूरी मिली
है, उसके मुताबिक
बारह साल या इससे कम
उम्र की बच्ची
से बलात्कार या
सामूहिक बलात्कार की
घटना में दोषी
को फांसी की
सजा होगी। बारह
साल से कम की बच्चियों
से छेड़छाड़ और
उनका पीछा करने
जैसी हरकतों के
दोषियों को भी कम से
कम दो साल और अधिकतम
सात साल की सजा देने
का प्रावधान किया
गया है। विशेष
मामलों में इस सजा को
बढ़ा कर चौदह साल या
फिर उम्रकैद तक
करने का भी प्रावधान है। इससे
पहले मध्यप्रदेश और
राजस्थान सरकार अपने
यहां इस तरह का कानून
बना चुकी हैं।
गौरतलब है कि
हरियाणा में इस साल जनवरी
में एक ही हफ्ते के
दौरान बच्चियों से
बलात्कार की पांच
घटनाएं सामने आर्इं,
जिसने सबको चिंतित
कर दिया। तीन
दिन के भीतर जींद, पानीपत,
पंचकूला और फरीदाबाद
में बलात्कार की
घटनाओं ने राज्य
में कानून-व्यवस्था
की भी कलई उतार कर
रख दी। ये वारदात उस
प्रदेश में हो रही थीं
जहां लड़कियों-महिलाओं
की सुरक्षा के
लिए ‘आॅपरेशन दुर्गा’
चलाया जा रहा है। लेकिन
इसके बरक्स राज्य
में महिलाएं और
लड़कियां कितनी असुरक्षित
हैं, इसकी एक झलक राष्ट्रीय
अपराध रिकार्ड ब्यूरो
के आंकड़ों से
मिलती है। हरियाणा
में वर्ष 2016 में
बलात्कार के एक
हजार एक सौ नवासी मामले
दर्ज हुए थे, जिनमें से
पांच सौ अठारह
यानी चौवालीस फीसद
मामले अठारह साल
से कम उम्र की लड़कियों
के थे। ‘बेटी
बचाओ बेटी पढ़ाओ’
का नारा देने
वाली सरकार महिलाओं
और बच्चियों की
सुरक्षा के मामले
में कितनी लाचार
है, ये आंकड़े
इसका प्रमाण हैं।
जनवरी की घटनाओं
के बाद तो मुख्यमंत्री ने खुद माना कि
प्रदेश में पिछले
कुछ महीनों में
महिलाओं के खिलाफ
यौन अपराधों का
ग्राफ तेजी से बढ़ा है।
अपराधों की रोकथाम
के खिलाफ सख्त
कानूनी पहलकदमी सराहनीय
है। लेकिन समस्या
यह है कि इस तरह
के अपराधों को
अंजाम देने वालों
से क्या केवल
कानूनी भय पैदा करके निपट
लिया जाएगा? कई
बार सत्ता, धन
और बाहुबल से
संपन्न लोग ऐसे मामलों में
शामिल पाए जाते
हैं और पकड़े गए रसूख
वाले लोगों को
सजा नहीं मिल
पाती है। यों भी बलात्कार
के मामलों में
सजा की दर काफी कम
है। जाहिर है,
इससे गलत संदेश
जाता है। लड़कियों
के साथ छेड़छाड़
और यौन उत्पीड़न
की ऐसी घटनाएं
उनका जीवन दूभर
कर देती हैं।
कई बार तो लड़कियां अपने खिलाफ
अपराध में न्याय
नहीं मिल पाने
की वजह से खुदकुशी जैसे कदम
भी उठा लेती
हैं। हरियाणा सरकार
ने जिस तरह के कड़े
प्रावधान ताजा विधेयक
में किए हैं,
बेहतर होता इसका
दायरा व्यापक होता।
बलात्कार के मामले
सामने आने के बाद पुलिस
का रवैया भी
अक्सर संवेदनहीन और
गैरजिम्मेदाराना होता है।
कुछ समय पहले
हरियाणा के एक पुलिस अफसर
ने तो यहां तक कह
दिया था कि बलात्कार की घटनाएं
समाज का हिस्सा
हैं और अनंतकाल
से चली आ रही हैं।
सवाल है कि जिस पुलिस
महकमे में इस स्तर तक
असंवेदनशील अधिकारी हों, वह बच्चियों को अपराधियों-बलात्कारियों से कैसे बचाएगी? जाहिर है,
कानूनी सख्ती के
साथ-साथ समूचे
तंत्र को पीड़ितों
के प्रति संवेदनशील
बनाने की जरूरत
है।
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