Wednesday, 21 March 2018

सुविधा की सजा


मानव तस्करी के मामले में आरोपी रहे मशहूर गायक दलेर मेंहदी को पंजाब की पटियाला कोर्ट में दोषी ठहराए जाने, उनकी गिरफ्तारी और तुरंत जमानत की खबर से एक बार फिर यही लगता है कि भारत की कानूनी प्रक्रिया की पेचीदगी का फायदा कई बार समर्थ और रसूख वाले लोगों को मिलता है। जहां किसी कमजोर पृष्ठभूमि के आरोपी के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया में तेजी देखी जाती है, वहीं अपराध में शामिल व्यक्ति अगर कोई ऊंची पहुंच वाला या जानी-मानी हस्ती है तो उसके प्रति पुलिस-प्रशासन में आंखें मूंदे रखने जैसा भाव पाया जाता है। हैरानी की बात है कि दलेर मेंहदी को करीब चौदह साल पहले कई लोगों से करोड़ों रुपए वसूलने और उन्हें दूसरे देशों में छोड़ आने के आरोप लगे थे, लेकिन अब इतने सालों बाद जब उस मामले में उन्हें सिर्फ दो साल की सजा हुई भी तो कुछ ही देर बाद जमानत भी मिल गई। यानी अब वे सजायाफ्ता भले हैं, लेकिन फिलहाल आजाद हैं। मानव तस्करी जैसे गंभीर अपराध के दोषी को मिलने वाली ऐसी सुविधा का कानूनी आधार चाहे जो हो, लेकिन यह समूचा प्रसंग अपने आप में बताने के लिए काफी है कि इंसाफ के तकाजे के बरक्स व्यवहार में हमारी व्यवस्था कैसे काम करती है!

गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों के दौरान लोगों को विदेश भेजने का झांसा देकर बड़ी रकम की ठगी करने वाले कई गिरोह पकड़ में आए थे। मानव तस्करी के इस धंधे को कबूतरबाजी के नाम से भी जाना जाता है। दलेर सिंह और उनके बड़े भाई शमशेर सिंह के खिलाफ 2003 में पहली शिकायत दर्ज कराई गई थी कि ये दोनों कानूनों को ताक पर रख कर कुछ लोगों को अपने संगीत समूह का हिस्सा बना कर दूसरे देशों में ले जाते हैं और उन्हें वहीं छोड़ देते हैं। इसके बदले भारी रकम वसूली जाती है। फिर जब मामला खुलने लगा तब पता चला कि दोनों भाइयों ने एक तरह से इसे अपना व्यवसाय बना लिया था। बाद में पटियाला पुलिस ने दोनों के खिलाफ धोखाधड़ी के इकतीस से ज्यादा मामले दर्ज किए। लेकिन दलेर को उनके कद का फायदा किस तरह मिला, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहली शिकायत के बाद जब उनके भाई को पुलिस ने पकड़ा था तब गिरफ्तारी में शामिल पुलिस की उस पूरी टीम का तबादला कर दिया गया था। फिर 2006 में भी पुलिस ने दलेर मेंहदी को निर्दोष बताते हुए अदालत से मामला बंद करने की अपील की थी। जाहिर है, अगर अदालत ने मौजूद सबूतों को पर्याप्त मानते हुए छानबीन की कानूनी प्रक्रिया जारी रखने के निर्देश नहीं दिए होते तो शायद दलेर मेंहदी इस सजा से भी बच निकलते।

मानव तस्करी का अपराध देश के भीतर भी एक गंभीर समस्या की शक्ल ले चुका है। इसे अंजाम देने वाले गिरोहों के जाल में अक्सर भोले-भाले और कमजोर लोग फंसते हैं और एक तरह से उनकी जिंदगी तबाह होकर रह जाती है। ऐसे में दलेर मेंहदी को दोषी ठहराए जाने और दो साल की सजा के तुरंत बाद जमानत मिलना इस तरह की गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त लोगों के मनोबल को ही बढ़ाएगा। हालांकि अदालतों के फैसले कई बार पुलिस की जांच रिपोर्ट के आधार पर भी आते हैं। किसी अपराध के मामले में जांच प्रक्रिया के दौरान पुलिस अगर संबंधित आरोपी की हैसियत या उसके रसूख को देख कर तथ्यों के आलोक में अपनी रिपोर्ट बनाए, तो अदालत के फैसले पर उसका असर पड़ेगा। यों भी, न्यायिक प्रक्रिया में ईमानदारी व्यवस्था और इंसाफ पर लोगों का भरोसा बनाए रखने की सबसे बड़ी जरूरत है।

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