Friday, 14 September 2018

बंद गली में लड़कियां



महिलाओं की खुदकुशी पर आई लैंसेट पब्लिक हेल्थ जर्नल की रिपोर्ट खास तौर पर भारत के लिए चिंता पैदा करने वाली है। इसके मुताबिक पूरी दुनिया में आत्महत्या करने वाली 1000 महिलाओं में 366 भारतीय होती हैं। हालांकि आंकड़ों के मुताबिक 1990 से लेकर 2016 के बीच भारत में आत्महत्या करने वाली महिलाओं की तादाद घटी है, बावजूद इसके, वैश्विक स्तर पर महिला खुदकुशी के आंकड़ों में हमारा योगदान अप्रत्याशित रूप से बढ़ा है। साफ है कि दुनिया ने इस समस्या को सुलझाने में जितनी तेजी दिखाई है, उसके मुकाबले हम फिसड्डी रहे हैं। मगर यह समस्या का सिर्फ एक पहलू है। अगर अपने यहां इसकी प्रकृति को समझने की कोशिश करें तो इसकी गंभीरता के साथ-साथ जटिलता का भी अहसास होता है। देश में आत्महत्या का रास्ता पकड़ने वाली महिलाओं में 71.2 फीसदी हिस्सा 15 से 39 साल के आयु वर्ग का होता है। रिपोर्ट इस तथ्य को खास तौर पर रेखांकित करती है कि खुदकुशी करने वाली महिलाओं में ज्यादातर शादीशुदा होती हैं। ध्यान देने की बात है कि 1990 से 2016 के बीच की जो अवधि अध्ययन के लिए चुनी गई है, भारत में उस दौरान लड़कियां केवल शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में आगे बढ़ीं बल्कि स्त्री-पुरुष संबंधों के ढांचे में भी अहम बदलाव देखने को मिले। बड़े शहरों में लिव-इन जैसे रिश्ते आम होते गए, तो छोटे शहरों में भी रिश्तों का खुलापन आया। परिवार के अंदर घुटन भरे माहौल से लड़कियां निकलीं, लेकिन आगे जॉब और रिलेशनशिप की जटिलताओं से उपजे अलग तरह के तनाव उनका इंतजार कर रहे थे। भारतीय महिलाओं के लिए यह बिल्कुल नए तरह का तनाव है, सो इससे उबरने और इसके लिए अभ्यस्त होने में वक्त लगना लाजिमी है। लेकिन इस कठिन मोर्चे पर महिलाओं को अकेले जूझने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता। अन्य देशों का अनुभव बताता है कि जरा सी मदद और सही समय पर थोड़ी सी हौसला अफजाई उनकी मुश्किल आसान कर सकती है। बस इसी जरा सी मदद का इंतजाम सरकार और समाज को करना है।

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