दुनिया के खूबसूरत
माने जाने वाले
केंद्रशासित आधुनिक शहर
चंडीगढ़ के सैक्टर-22
में एक जानामाना
रेस्टोरेंट है नुक्कड़
ढाबा. इस रेस्टोरेंट
का खाना इतना
लजीज है कि दूरदूर से
लोग यहां खाना
खाने आते हैं,
जिस की वजह से वहां
हमेशा ग्राहकों की
भीड़ लगी रहती
है.
इसी रेस्टोरेंट के मालिक
जोगिंदर सिंह की
20 साल की बेटी मनीषा सिंह
सैक्टर-34 के एक
इंस्टीट्यूट से आर्किटैक्चर
का कोर्स कर
रही थी. पढ़ने
में वह ठीकठाक
थी, इसलिए वह
एक अच्छी आर्किटैक्ट
बनना चाहती थी.
2 भाइयों की एकलौती
बहन मनीषा काफी
खूबसूरत थी. पिता
जोगिंदर सिंह को अपनी इस
एकलौती बेटी से लगाव तो
था ही, साथ ही नाज
भी था कि आगे चल
कर वह खानदान
का नाम रौशन
करेगी.
लेकिन यह सोच
कर उन का मन उदास
भी हो जाता था कि
बेटियां तो पराया
धन होती हैं.
पढ़ाई पूरी होने
के बाद वह मनीषा की
शादी कर देंगे
तो वह उन्हें
छोड़ कर अपनी ससुराल चली
जाएगी.
खैर, रोज की
तरह 18 अक्तूबर, 2014 की
सुबह मनीषा इंस्टीट्यूट
जाने के लिए घर से
निकली. उस दिन शनिवार था,
इसलिए दोपहर तक
उसे घर वापस आ जाना
था. लेकिन वह
शाम तक भी नहीं लौटी
तो घर में सभी को
उस की चिंता
हुई. चिंता की
वजह यह थी कि उस
का मोबाइल फोन
स्विच्ड औफ बता रहा था.
जोगिंदर सिंह ने
तुरंत इस बात की सूचना
पुलिस कंट्रोल रूम
को देने के साथ गुमशुदगी
एवं किडनैपिंग की
आशंका संबंधी एक
लिखित शिकायत सैक्टर-22
की पुलिस चौकी
जा कर दे दी. यह
चौकी सैक्टर-17 स्थित
थाना सैंट्रल के
अंतर्गत आती थी, इसलिए थाना
सैंट्रल में इस की रिपोर्ट
दर्ज कर ली गई.
पुलिस रात भर
मनीषा की तलाश करती रही.
जब सफलता नहीं
मिली तो पुलिस
ने अगले दिन
उस के मोबाइल
नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर
खंगाली. इस से पता चला
कि वह शनिवार
को सुबह से ही रजत
के संपर्क में
थी. 21 वर्षीय रजत
बेनीवाल चंडीगढ़ के
सैक्टर-51ए में
रहता था और पंजाब यूनिवर्सिटी
के इवनिंग कालेज
में बीए द्वितीय
वर्ष का छात्र
था.
संदेह के आधार
पर पुलिस ने
रजत को हिरासत
में ले कर औपचारिक पूछताछ तो
की ही, उस के मोबाइल
फोन की लोकेशन
भी निकलवाई. इस
से पता चला कि उस
के और मनीषा
के मोबाइल फोन
की लोकेशन एक
साथ थी.
इसी जानकारी के आधार पर पुलिस
ने रजत को विधिवत गिरफ्तार
कर पूछताछ शुरू
की. पहले तो वह पुलिस
को बहकाने की
कोशिश करता रहा,
लेकिन 2 घंटे की सघन पूछताछ
में आखिर उस ने अपना
अपराध स्वीकार कर
लिया. उस ने बताया कि
मनीषा ने किसी नशीले पदार्थ
का सेवन कर लिया था,
जिस से उस की मौत
हो गई थी. डर की
वजह से उस ने उस
की लाश को चंडीगढ़ से 40 किलोमीटर
दूर ले जा कर राजपुरा
रोड के एक गंदे नाले
में फेंक दिया
था.
पुलिस को रजत
के इस बयान में पूरी
तरह से सच्चाई
नजर नहीं आ रही थी.
इस के बावजूद
डीएसपी सैंट्रल डा.
गुरइकबाल सिंह सिद्धू
के नेतृत्व में
सैंट्रल थाना के कार्यकारी थानाप्रभारी इंसपेक्टर
जसबीर सिंह और सैक्टर-22 चौकीप्रभारी देशराज
सिंह के अलावा
एक विशेष टीम
रजत को ले कर राजपुरा
रोड पर कस्बे
बनूड़ से होते हुए शंभु
बैरियर के समीप स्थित गांव
टेपला पहुंची, जहां
वह बदबूदार गंदा
नाला था.
रजत की निशानदेही
पर आधे घंटे
की कोशिश के
बाद गंदे नाले
के पास से मनीषा की
लाश बरामद की
ली गई. लाश पूरी तरह
से कीचड़ से
सनी थी. पुलिस
ने मनीषा के
घर वालों को
फोन कर के वहीं बुला
कर लाश की शिनाख्त करा ली. शिनाख्त होने के बाद पुलिस
ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए चंडीगढ़ के सैक्टर-16
स्थित जनरल अस्पताल
की मोर्चरी में
भिजवा दिया.
पुलिस का मानना
था कि रजत ने मनीषा
की मौत की जो वजह
बताई थी, वह सही नहीं
हो सकती. इस
मामले में अकेला
रजत ही नहीं शामिल था,
बल्कि कुछ अन्य
लोग भी उस के साथ
थे. पुलिस यह
मान कर चल रही थी
कि मनीषा की
मौत का रहस्य
काफी गहरा है.
चंडीगढ़ लौट कर
रात में एक बार फिर
रजत से गहन पूछताछ की
गई. इस पूछताछ
में उस ने चौंकाने वाला जो खुलासा किया,
उस के अनुसार,
इस वारदात में
उस के अलावा
2 अन्य लोग शामिल
थे. वे थे— चंडीगढ़ के सैक्टर-56
का रहने वाला
कमल सिंह और मोहाली के
फेज-10 का रहने वाला दिलप्रीत
सिंह. 29 साल का
कमल सिंह एक रेस्तरां का मालिक
होने के साथसाथ
शादीशुदा ही नहीं,
एक बच्चे का
बाप भी था.
22 साल का दिलप्रीत
सिंह इंटीरियर डिजाइनिंग
का डिप्लोमा कर
रहा था.
पुलिस ने उन
दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया था. दोनों
से हुई पूछताछ
में पता चला कि दिलप्रीत
मृतका मनीषा का
बौयफ्रैंड था. उसी
ने उस की जानपहचान अपने दोस्तों
रजत और कमल से कराई
थी. पुलिस को
दिए अपने बयानों
में उन्होंने बताया
था कि 18 अक्तूबर,
2014 को चारों एक
पार्टी में गए थे, जहां
सब ने ड्रग्स
लिया और शराब भी पी.
सभी आ कर
गाड़ी में बैठे
थे, तभी अचानक
मनीषा की मौत हो गई.
इस के बाद वे उस
की लाश को ले कर
पहले पल्सौरा गांव
गए. वहां उन्हें
लाश को ठिकाने
लगाने का मौका नहीं मिला
तो वे लाश को ले
कर राजपुरा रोड
पर स्थित गंदे
नाले पर पहुंचे
और वहीं लाश
को एक कपड़े
में लपेट कर फेंक दिया.
20 अक्तूबर,
2014 को तीनों अभियुक्तों
को जिला अदालत
में पेश कर के एक
दिन के कस्टडी
रिमांड पर लिया गया. उसी
दिन सैक्टर-16 के
जीएमएसएच अस्पताल में मनीषा
की लाश का पोस्टमार्टम हुआ. पोस्टमार्टम
के बाद लाश घर वालों
के हवाले कर
दी गई. लाश पर चोट
का कोई निशान
नहीं था. उस समय मौत
की वजह भी स्पष्ट नहीं
हो सकी थी. सीएफएसएल जांच के लिए मृतका
के शरीर के कुछ हिस्सों
केअलावा विसरा सुरक्षित
कर लिया गया
था.
21 अक्तूबर को सैक्टर-25
के श्मशानगृह में
मनीषा के घर वालों ने
उस का दाहसंस्कार
कर दिया. उस
समय वहां कुछ
पत्रकार भी मौजूद
थे, जिन से मनीषा के
घर वालों ने
कहा था कि पुलिस वाले
कुछ भी कहें,
पर साफ है कि मनीषा
की हत्या की
गई है, वह भी रंजिशन
एवं योजनाबद्ध तरीके
से.
क्योंकि मनीषा किसी
भी तरह का नशा नहीं
करती थी. वह इस तरह
के लड़कों के
साथ कहीं जाती
भी नहीं थी.
कमल ने योजनाबद्ध
तरीके से उन से बदला
लेने के लिए मनीषा की
हत्या की थी. क्योंकि एक साल पहले वह
उन के ढाबे पर खाना
खाने आया था.
तब उस ने
बिल न अदा करते हुए
उन के ढाबे पर काम
करने वाले एक लड़के के
साथ मारपीट की
थी. उस के बाद उन
लोगों ने भी उसे उस
की बदतमीजी का
थोड़ा सबक सिखाया
था. उस ने उस समय
काफी बेइज्जती महसूस
की थी. अपनी
उसी बेइज्जती का
बदला लेने के लिए उस
ने योजना बना
कर दिलप्रीत, जो
मनीषा के इंस्टीट्यूट
में पढ़ता था,
के जरिए मनीषा
का अपहरण कर
योजनाबद्ध तरीके से
उस की हत्या
कर दी थी.
दूसरी ओर पुलिस
ने जो जांच की थी,
उस के अनुसार,
रजत, कमल और दिलप्रीत ड्रग्स के
आदी थे. मोबाइल
पर संदेश भेज
कर किसी जिंदर
नामक शख्स से उन्होंने ड्रग्स मंगवाया
था. जिंदर के
बारे में इन्हें
ज्यादा जानकारी नहीं
थी. हां, पूछताछ
में यह जरूर पता चला
है कि अभियुक्त
कमल पर थाना सैक्टर-39 में हत्या
का एक मुकदमा
दर्ज था, जो अदालत में
विचाराधीन है.
अभियुक्तों का कहना
था कि मनीषा
भी कभीकभी ड्रग्स
लेती थी. उस दिन भी
उन चारों ने
नशे के लिए एक साथ
ड्रग्स लिया था.
तभी ओवरडोज की
वजह से मनीषा
की मौत हो गई थी.
उस के बाद डर की
वजह से उन्होंने
उस की लाश को ठिकाने
लगाने के लिए गंदे नाले
में फेंक दिया
था.
पुलिस की इस
कहानी से मनीषा
के घर वाले कतई सहमत
नहीं थे. उन्होंने
पत्रकारों के माध्यम
से पुलिस के
सामने सवाल खड़े
किए थे कि क्या पुलिस
ने इस बात की जांच
की है कि जिसे ड्रग्स
की ओवरडोज से
मौत माना जा रहा है,
कहीं वह ड्रग्स
दे कर हत्या
करने का मामला
तो नहीं है?
नशेबाजों ने उस
की 2 लाख रुपए
की ज्वैलरी हथियाने
के लिए तो उस की
हत्या नहीं की,
जो उस ने उस दिन
पहन रखी थी? योजना बना
कर मनीषा का
अपहरण तो नहीं किया गया?
कहीं ऐसा तो नहीं कि
प्रभावी परिवारों के
लड़कों के पकड़े
जाने से पूरी कहानी बदल
दी गई हो?
चंडीगढ़ में आम
चर्चा थी कि वहां ड्रग
पैडलर्स का पूरा रैकेट सक्रिय
है. ड्रग्स ओवरडोज
मामलों में पहले
भी वहां कुछ
मौतें हो चुकी थीं. कहीं
ऐसा तो नहीं कि मनीषा
को उस रैकेट
की जानकारी हो
गई थी और इसी वजह
से उसे मौत की नींद
सुला दिया गया
हो? लगातार हो
रही इस तरह की मौतों
के बाद भी पुलिस नशे
के सौदागरों की
धरपकड़ कर उन के खिलाफ
सख्त काररवाई क्यों
नहीं कर रही?
चंडीगढ़ में एक
प्रतिष्ठित संस्था है
फौसवेक (फेडरेशन औफ
सेक्टर वेलफेयर एसोसिएशंज).
इस संस्था के
सदस्यों ने साफ कहा था
कि वे नशे से जुड़े
लोगों को पकड़ कर पुलिस
के पास ले जाते हैं
और पुलिस वाले
अकसर उन्हें चेतावनी
दे कर छोड़ देते हैं.
crime story
मनीषा के मामले
को ले कर शहर में
प्रदर्शन होते रहे,
कैंडल मार्च निकाले
जा रहे थे, लेकिन पुलिस
ने अपने ढंग
से काररवाई करते
हुए मनीषा की
मौत के ठीक
81 दिनों बाद 8 जनवरी,
2015 को रजत, कमल
और दिलप्रीत के
खिलाफ आरोपपत्र तैयार
कर के अदालत
में पेश कर दिया. यह
चार्जशीट नशे की
अहम धाराओं के
तहत दाखिल की
गई थी.
लेकिन अदालती काररवाई
अपने ढंग से चली. मामले
की गहराई में
जाने का प्रयास
करते हुए अदालत
ने तीनों आरोपियों
के खिलाफ 4 फरवरी,
2015 को गैरइरादतन हत्या,
सबूतों से छेड़छाड़
और किडनैपिंग की
धाराओं के आरोप तय कर
दिए. सुनवाई की
अगली तारीख 24 फरवरी
तय की गई.
उस दिन चंडीगढ़
की अतिरिक्त जिला
एवं सत्र न्यायाधीश
अंशु शुक्ला की
अदालत में केस की विधिवत
सुनवाई शुरू हुई.
सुनवाई के पहले दिन मृतका
के भाई 25 वर्षीय
ऋषभ सिंह ने अपना बयान
दर्ज कराया कि
घटना वाले दिन
सुबह कार से उस की
बहन को लिवाने
दिलप्रीत आया था.
घर के बाहर मनीषा ने
कुछ देर उस से बातचीत
की और फिर वह इंस्टीट्यूट
जाने की बात कह कर
गाड़ी में बैठ गई. कार
में पहले से ही 2 अन्य
लोग मौजूद थे.
सरिता विशेष
इस के बाद
अदालत में मौजूद
तीनों अभियुक्तों की
उस ने पहचान
भी की. इस के बाद
केस की तारीख
पड़ी 12 मार्च, 2015 को.
उस दिन आरोपी
दिलप्रीत के वकील
तरमिंदर सिंह ने अदालत में
अरजी दायर कर के मनीषा
के फोन की जांच कराने
की मांग की,
जो स्वीकार कर
ली गई.
लेकिन अगले दिन
जब मनीषा का
मोबाइल फोन कोर्ट
में पेश किया
गया तो उस का लौक
नहीं खोला जा सका. इस
पर मुकदमा 20 मार्च
तक के लिए टल गया.
कोर्ट ने सीएफएसएल
को मोबाइल फोन
भेज कर उस की जांच
रिपोर्ट सौंपने को
कहा.
20 मार्च को यह
रिपोर्ट पेश नहीं
हो सकी तो अगली तारीख
31 मार्च की पड़ी.
उस दिन केस के जांच
अधिकारी ने सीएफएसएल
की ओर से 5 सीडीज में
दिया गया मोबाइल
का डाटा कोर्ट
को सौंपा. इस
के बाद लगातार
कई पेशियों तक
अन्य गवाहों के
बयान दर्ज करने
के अलावा उन
का क्रौस एग्जामिनेशन
हुआ.
6 जून, 2015 को सीएफएसएल
ने मनीषा की
जनरल विसरा रिपोर्ट
अदालत में पेश कर दी,
जिस में बताया
गया था कि मौत से
पहले उस के साथ रेप
और अननैचुरल सैक्स
किया गया था. वहीं विसरा
से एक आरोपी
का सीमन भी बरामद कर
प्रिजर्व किया गया
था. अब आगे तीनों आरोपियों
से इस का मिलान कराया
जाना था. इस के अलावा
सीएफएसएल ने मनीषा
के जिस्म के
कुछ हिस्सों की
गहन जांच के आधार पर
अपनी एक विशेष
रिपोर्ट भी तैयार
की थी.
इस रिपोर्ट के आने के बाद
पुलिस की आरोपियों
से मिलीभगत अथवा
पूछताछ में की गई ढील
अब पूरी तरह
से सामने आ गई थी.
इन तमाम मुद्दों
पर बहस होने
के बाद 24 जुलाई,
2015 को मामले की
सुनवाई के दौरान
सरकारी वकील ने इस केस
में सामूहिक दुराचार
और आपराधिक दुराचार
के अलावा आपराधिक
साजिश रचने की धाराएं क्रमश:
376डी, 377 एवं 120बी
जोड़ने की अपील अदालत से
की. तीनों आरोपियों
का डीएनए सैंपल
लेने की भी बात कही
गई.
इस विशेष रिपोर्ट
में मनीषा की
मौत का कारण इंट्राक्रैनियल हैमरेज बताया
गया था. सेरोलौजिकल
जांच में उस के गुप्तांगों
में वीर्य मिला
था. विसरा जांच
के रासायनिक विश्लेषण
में मनीषा के
शरीर में 85.57 प्रतिशत
इथाइल अल्कोहल की
मात्रा पाई गई थी. वहीं
नार्पसेयूडोफिड्राइन नामक साइकोट्रोपिक
सब्सटांस (नशीला पदार्थ)
के मौजूद होने
की बात भी कही गई
थी. इस सब के अलावा
हिस्टोपैथोलौजी रिपोर्ट में ब्रौंकोन्यूमोनिया
एवं माइक्रोवेसिकुलर स्टीटोसिस
मिलने की बात भी पता
चली थी.
सरकारी वकील ने
जो नई धाराएं
इस केस में जोड़ने की
दरख्वास्त अदालत से
की थी, उस का विरोध
करते हुए बचाव
पक्ष के वकील इंदरजीत बस्सी ने
अदालत से कहा कि धाराओं
में संशोधन अथवा
बढ़ोत्तरी की अरजी
मान्य नहीं है.
केस की जांच करने वालों
ने अपनी जांच
पूरी कर के चार्जशीट दायर की है और
इस समय केस गवाहियों की स्टेज
पर है.
crime story
अपने इस विरोध
के संबंध में
बचावपक्ष के वकील
ने अपने ये नुक्ते अदालत
के सामने रखे
थे—
मृतका के साथ
यौन प्रताड़ना के
मुद्दे पर किसी भी गवाह
ने अभी तक अपना बयान
दर्ज नहीं कराया
है. अभियोजन पक्ष
की कहानी के
हिसाब से कहीं भी इस
का जिक्र नहीं
किया गया कि आरोपियों के पीडि़ता
के साथ यौनसंबंध
बने थे. अभियोजन
पक्ष के अनुसार,
मृतका खुद आरोपियों
के साथ गई थी, जिस
में कहीं भी जबरदस्ती का कोई आरोप नहीं
लगाया गया है.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतका
के जिस्म पर
कहीं भी चोट के निशान
नहीं थे, जिस से उस
के साथ जबरदस्ती
की बात साबित
नहीं होती. सीएफएसएल
रिपोर्ट और चार्जशीट
में इस बात का जिक्र
नहीं है कि यौनसंबंध कब और किस समय
बने थे? डीएनए
प्रोफाइल के तहत
अभियोजन पक्ष ने आरोपियों के ब्लड सैंपल लेने
के लिए अरजी
दायर की है, ताकि वीर्य
से इस का मिलान किया
जा सके. ऐसे
में यह प्रतीत
होता है कि अभियोजन पक्ष खुद
इस बात को ले कर
संशय में है कि यह
वीर्य किस का है?
यह बहस भी
कुछ दिनों तक
चलती रही. 29 जुलाई
को विद्वान जज
अंशु शुक्ला ने
इस मुद्दे पर
और्डर पास किया
कि दुराचार और
कुकर्म की अतिरिक्त
धाराएं जोड़ने पर
फैसला अभियुक्तों की
ब्लड सैंपल रिपोर्ट
और डीएनए टेस्ट
की रिपोर्ट के
आने के बाद होगा. इस
के लिए तारीख
दी गई 29 अक्तूबर,
2015. लेकिन उस दिन
रिपोर्ट न आने की वजह
से सुनवाई टल
गई.
बाद में रिपोर्ट
आई तो नई धाराएं जोड़
कर अदालत की
काररवाई फिर से शुरू हुई.
देखतेदेखते एक साल
से अधिक का समय गुजर
गया. 31 जनवरी, 2017 को
अदालत ने अपनी काररवाई मुकम्मल कर
के इस केस के तीनों
अभियुक्तों को दोषी
करार दे कर सजा सुनाने
की तारीख 4 फरवरी,
2017 तय कर दी.
इस तरह सक्षम
एडीजे अंशु शुक्ला
ने केस से जुड़े 17 गवाहों के
बयान एवं साक्ष्यों
के आधार पर अपने 160 पृष्ठों के
फैसले में 4 फरवरी,
2017 को मनीषा सिंह
केस के तीनों
अभियुक्तों रजत बेनीवाल,
कमल सिंह और दिलप्रीत सिंह को सामूहिक दुष्कर्म, अप्राकृतिक
यौनसंबंध, गैरइरादतन हत्या और
आपराधिक साजिश के
आरोप में 20-20 साल
की कैद के अलावा तीनों
को 5 लाख 22 हजार
रुपए प्रति दोषी
जुरमाने की सजा सुनाई. अदालत
के इस फैसले
के खिलाफ दोषियों
ने समयावधि के
भीतर हाईकोर्ट में
अपील की है, जो विचाराधीन
है.
बहरहाल, मनीषा के
पिता द्वारा जारी
किया गया यह संदेश काबिलेगौर
है कि अपने बच्चों के
सपनों को पूरा करने के
लिए मातापिता कोशिश
तो करें, लेकिन
बच्चे किसी के बहकावे में
न आ सकें, इस बात
का भी ध्यान
रखना जरूरी है.
अगर उन की आदतों या
व्यवहार में जरा भी बदलाव
नजर आए तो बच्चों को
एक दोस्त की
तरह समझा कर किसी के
बहकावे में आने से रोकें.
आप का बच्चा
कितना भी सही क्यों न
हो, उसे बहकाने
वाले तब तक उस का
पीछा नहीं छोड़ते,
जब तक वह उन के
जाल में फंस नहीं जाता.
-सरिता विशेष
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