हिमाचल प्रदेश की
राजधानी शिमला तो
खूबसूरत है ही, लेकिन प्राकृतिक
रूप से देखें
तो यहां का कोटखाई और
भी ज्यादा खूबसूरत
है. लाल, हरे
सेबों से लदे सेब के
बाग यहां की सुंदरता में और भी चारचांद
लगा देते हैं.
पर्वतीय क्षेत्र होने
के कारण यहां
का जीवन भले
ही दुरूह है,
लेकिन सेब बागानों
की वजह से यह इलाका
काफी समृद्ध है,
पैसे से भी और संसाधनों
से भी. वैसे
तो इस क्षेत्र
में अपराध कम
ही होते हैं,
लेकिन 4 जुलाई को
यहां जो कुछ हुआ, उस
ने पहाड़ों की
रानी कही जाने
वाली हिमाचल प्रदेश
की राजधानी शिमला
तक को हिला कर रख
दिया.
यह कुछ ऐसा
ही था, जैसा
16 दिसंबर, 2012 को दिल्ली
में निर्भया के
साथ हुआ था. शिमला से
60 किलोमीटर दूर स्थित
कस्बा कोटखाई को
तहसील का दरजा प्राप्त है. इस तहसील में
छोटेछोटे 247 गांव हैं.
इन्हीं गांवों में
एक गांव है हलाईला. गांव में
स्कूली शिक्षा के
आगे की पढ़ाई
का साधन न होने की
वजह से गांव के बच्चे
महासू स्कूल में
पढ़ने जाते हैं,
जो गांव से कई किलोमीटर
दूर है.
15 वर्षीया गुडि़या भी इसी स्कूल में
10वीं की छात्रा
थी. 4 जुलाई को
वह रोजाना की
तरह स्कूल गई,
लेकिन शाम तक लौट कर
नहीं आई.
ऐसे में घर
वालों का चिंतित
होना स्वाभाविक ही
था. उन्होंने गुडि़या
की काफी खोजबीन
की, लेकिन उस
का कोई पता नहीं चला.
मजबूर हो कर उन्होंने थाना कोटखाई
में गुडि़या के
लापता होने की रिपोर्ट लिखा दी.
गुडि़या की नग्न
लाश 6 जुलाई की
सुबह हलाईला के
जंगल में पड़ी
मिली. उस की लाश की
हालत बता रही थी कि
उस के साथ दरिंदगी करने के बाद उस
की हत्या की
गई है. तत्काल
इस मामले की
सूचना पुलिस को
दी गई, लेकिन
पुलिस को घटनास्थल
पर पहुंचने में
4 घंटे लगे. इस बीच घटनास्थल
पर सैकड़ों लोग
एकत्र हो चुके थे. निस्संदेह
यह मामला गैंगरेप
के बाद जघन्य
तरीके से हत्या
करने का था. पुलिस ने
केस दर्ज किया
और शुरुआती पूछताछ
के बाद गुडि़या
की लाश पोस्टमार्टम
के लिए भेज दी.
एक स्कूली छात्रा
के साथ दरिंदगी
की इस घटना से प्राय:
शांत रहने वाली
वादी सुलग उठी.
निस्संदेह यह घटना
दिल दहला देने
वाली थी. गुडि़या
के गुनहगारों का
पकड़ा जाना जरूरी
था. गुडि़या के
पिता ने रसूखदार
लोगों को साथ ले कर
पुलिस पर दबाव बनाया. केस
पहले ही दर्ज हो चुका
था, सो पुलिस
ने जांच में
सक्रियता दिखानी शुरू
की. पुलिस ने
3-4 लड़कों को पकड़ा
भी, लेकिन रसूखदार
होने की वजह से उन्हें
मामूली पूछताछ के
बाद छोड़ दिया.
दरअसल, सोशल नेटवर्किंग
साइट पर बतौर संदिग्ध इन लोगों
के फोटो वायरल
हुए थे, जिस की वजह
से पुलिस उन्हें
उठा लाई थी.
पुलिस का ढुलमुल
रवैया देख कर गुडि़या के परिजनों
का पुलिस वालों
से विश्वास उठने
लगा तो कोटखाई
के लोगों में
पुलिस के प्रति
आक्रोश उभरने लगा.
मामला सुलगते देख
11 जुलाई को कोटखाई
पुलिस ने पास ही के
गांव के 4 युवकों
को हिरासत में
लिया और गुडि़या
केस में पूछताछ
के लिए उन्हें
किसी गुप्त स्थान
पर ले गई. इस के
साथ ही पुलिस
क्षेत्र में सक्रिय
मोबाइल काल डिटेल्स
के डंप डाटा
की छानबीन भी
कर रही थी. इस बीच
पुलिस की एक टीम ने
पोशीदगी से उन लोगों की
सूची भी तैयार
की, जो इस वारदात वाले
दिन से ही गांव से
बाहर थे.
इस प्रयास में
पुलिस को एक ऐसे युवक
के बारे में
पता चला, जो वारदात वाले
दिन से ही भूमिगत था.
पूरे गांव में
किसी को भी इस बात
की खबर नहीं
थी कि वह अचानक कहां
चला गया. पुलिस
ने उस युवक के मोबाइल
को ट्रैकिंग पर
लगा कर उस की काल
डिटेल्स व लोकेशन
पर नजर रखनी
शुरू कर दी. इस से
पुलिस को उस की गतिविधियों
पर शक तो हुआ, लेकिन
न जाने किस
वजह से पुलिस
ने उस की ओर से
ध्यान हटा लिया.
वैसे पुलिस ने
इस केस की अपनी जांच
के बारे में
अपनी अब तक की प्रगति
के बारे में
किसी को कुछ पता नहीं
चलने दिया था.
फिर भी जैसेतैसे
यह बात सामने
आ गई कि हिरासत में
लिया गया एक आरोपी उस
स्कूल के निकटवर्ती
गांव का रहने वाला था,
जहां गुडि़या पढ़ती
थी. यह शख्स गांव में
अकेला रहता था और खूब
नशा करता था.
उस की मां एक सेवानिवृत्त
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी
थी, जिस वजह से वह
खुद का कुछ ज्यादा ही
रौबदाब बनाए रखने
की कोशिश करता
था.
पत्रकारों को पुलिस
ने इस केस के संबंध
में कुछ बताया
था तो केवल इतना कि
इस कांड में
4 से अधिक आरोपी
हो सकते हैं,
साथ ही यह भी कि
जंगल में जिस जगह से
गुडि़या का शव बरामद हुआ
था, वह जगह सड़क से
ज्यादा दूर नहीं
है. जिस तरीके
से गुडि़या का
नग्न शव वहां पड़ा मिला
था, उस से साफ जाहिर
होता है कि उस से
दुराचार कर के उस की
हत्या कहीं और की गई
थी और बाद में शव
को वहां ला कर फेंक
दिया गया था.crime
story
इधर यह सब
चल रहा था और उधर
मामला हल करने के लिए
हिमाचल प्रदेश के
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने प्रदेश के
डीजीपी सोमेश गोयल
को अपने निवास
पर बुलाया. उन्होंने
डीजीपी से इस मामले को
जल्दी से जल्दी
हल करने के लिए एक
स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम
का गठन करने
का आदेश दिया,
साथ ही मुख्यमंत्री
ने पीडि़ता के
परिवार को 5 लाख
रुपया सहायता राशि
देने की घोषणा
भी की.
डीजीपी सोमेश गोयल
ने उसी दिन आईजी जहूर
हैदर जैदी की अगुवाई में
एसआईटी गठित कर दी. इस
टीम में जिन पुलिस अधिकारियों
को शामिल किया
गया, वे थे एएसपी (शिमला)
भजनदेव नेगी, डीएसपी
(ठियोग) मनोज जोशी,
डीएसपी रतन नेगी,
थानाप्रभारी (ढल्ली थाम)
बाबूराम शर्मा, एसआई
धर्म सिंह, थानाप्रभारी
(छोटा शिमला) राजेंद्र
सिंह, थानाप्रभारी (कोटखाई)
व एडीशनल थानाप्रभारी
(ठियोग) के अलावा
आधा दरजन अन्य
पुलिसकर्मी.
इस टीम ने
युद्धस्तर पर गुडि़या
केस की छानबीन
करते हुए 84 संदिग्ध
लोगों से पूछताछ
की. वह भी केवल 52 घंटों में.
28 मोबाइल फोनों की
काल डिटेल्स निकलवा
कर उन की भी जांच
की गई. यह मामला कोटखाई
थाना में धारा
376 एवं 302 के तहत
दर्ज किया गया
था. अब इस में पोक्सो
एक्ट की धारा
4 का भी समावेश
कर दिया गया
था.
अपनी इस तरह
की उपलब्धियों के
साथ 13 जुलाई को
डीजीपी सोमेश गोयल
ने पुलिस मुख्यालय
में एक बड़ी प्रैस कौन्फ्रैंस
की. उन्होंने पहले
तो इस मामले
के हल हो जाने की
घोषणा करते हुए
अपने सभी कनिष्ठ
अधिकारियों की पीठ
थपथपाई. फिर पत्रकारों
को बताया कि
उन की पुलिस
ने गुडि़या केस
को महज 52 घंटों
के भीतर सुलझा
कर इस कांड में शामिल
सभी आरोपियों को
गिरफ्तार कर लिया
है.
उन नामों का
खुलासा करते हुए
उन्होंने बताया कि
इस मामले में
जिन्हें गिरफ्तार किया
गया है, वे हैं—महिंद्रा
पिकअप वैन का चालक राजेंद्र
सिंह उर्फ राजू,
उम्र 32 साल, निवासी
गांव हलाईला, उत्तराखंड
का रहने वाला
42 वर्षीय सुभाष सिंह
बिष्ट, नेपाल निवासी
29 वर्षीय सूरज सिंह,
19 साल का लोकजन
उर्फ छोटू और गढ़वाल निवासी
38 वर्षीय दीपक उर्फ
दीपू.
संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों
से जानकारियां साझा
करते हुए डीजीपी
ने बताया, ‘‘हालफिलहाल
ये सभी अभियुक्त
हलाईला ही में रह रहे
थे, जबकि राजू
मूलरूप से जिला मंडी के
गांव जंजैहली का
रहने वाला है.
एक अन्य अभियुक्त
के बारे में
बताना रह गया, वह है
महासू के नजदीक
शराल गांव का रहने वाला
29 वर्षीय आशीष चौहान
उर्फ आशु.
‘‘यह एक ब्लाइंड
मर्डर केस था. आरोपियों ने दरिंदगी
की सारी हदें
पार कर दी थीं. यह
कोई वारदात नहीं
थी, बल्कि अपर्चुनिटी
क्राइम था. नशे में धुत्त
5 आरोपियों ने पहले
छात्रा के साथ बलात्कार किया, फिर
उस की हत्या
कर दी. अपराध
के दिन लड़की
के पास मोबाइल
नहीं था. उस दिन इस
क्षेत्र में बारिश
भी हुई थी. मेरा दावा
है कि हमारी
एसआईटी ने 5 तरह
के वैज्ञानिक सबूत
जुटा कर इस केस को
पूरी जिम्मेदारी से
हल कर लिया है.’’
लेकिन लोगों को
पुलिस का यह दावा हजम
नहीं हुआ. पुलिस
जांच से नाखुश
आक्रोशित भीड़ ने
पुलिस के ही खिलाफ कमर
कस ली. कोटखाई
व ठियोग थानों
पर पत्थरबाजी करते
हुए लोगों ने
जम कर हंगामा
किया.
14 जुलाई को जब
शिमला के वरिष्ठ
पुलिस अधीक्षक डी.डब्ल्यू. नेगी ठियोग
थाना में आए हुए थे,
तभी लोगों ने
थाने पर हमला कर के
न केवल एसएसपी
से धक्कामुक्की की,
बल्कि एक दारोगा
को भी थाने से बाहर
खींच कर उस की वर्दी
पर लगे स्टार
नोच लिए. पुलिसकर्मियों
ने बड़ी मुश्किल
से अपने एसएसपी
को थाने के भीतर पहुंचा
कर गेट बंद कर लिया.
इस बीच उग्र
भीड़ ने एक एसपी व
एक डीएसपी की
गाड़ी समेत पुलिस
की कई गाडि़यों
को तोड़ डाला
था. इधर यह सब चल
रहा था, उधर शिमला में
इस तरह के हंगामे की
आशंका के मद्देनजर
मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव,
मुख्य सचिव गृह
व डीजीपी सहित
अन्य कई अधिकारियों
की सचिवालय में
आपातकालीन बैठक हुई.
बैठक के तुरंत
बाद सीएम वीरभद्र
सिंह ने घोषणा
कर दी कि मामले की
संवेदनशीलता को देखते
हुए मैं इस केस को
सीबीआई के हवाले
करने की सिफारिश
करता हूं.
सीएम का आदेश
होते ही शासन ने इस
से संबंधित अधिसूचना
जारी कर दी, ताकि किसी
को किसी तरह
का संशय न रहे.
लेकिन लोगों का
कहना था कि इस कांड
में संलिप्त रईसजादों
को बचाने के
लिए पुलिस सारा
केस गरीब मजदूरों
पर डालने की
कोशिश कर रही है. पहले
कुछेक रईसजादों को
पुलिस ने इस केस में
पकड़ा भी था, मगर उन्हें
जल्दी ही छोड़ दिया गया
था, जिस का जिक्र हम
शुरू में कर चुके हैं.
नतीजा यह हुआ कि कोटखाई
व ठियोग में
हुई किरकिरी के
बाद शिमला पुलिस
बैकफुट पर आ गई. जिन
रईसजादों को पूछताछ
के बाद छोड़
दिया गया था, पुलिस ने
उन्हें फिर से पकड़ लिया.
शिमला के डीडीयू
अस्पताल में इन के सीमन
एनालिसिस और डीएनए
प्रोफाइलिंग के सैंपल
लिए गए. मैडिकल
करवाने के बाद उन्हें पुलिस
मुख्यालय ले जा
कर उन से देर रात
तक पूछताछ की
जाती रही. उन में एक
के ऊपर पहले
से कई आपराधिक
मामले दर्ज थे.
कुछ दिनों पहले
ही वह शिमला
की जिला अदालत
से एक आपराधिक
केस में बरी भी हुआ
था.
पुलिस जो कर
रही थी, लोग उस से
पहले ही संतुष्ट
नहीं थे. जब एक रईसजादे
आशु को गुपचुप
तरीके से अदालत
पर पेश कर के न्यायिक
हिरासत में जेल भेज दिया
गया तो लोग और भी
भड़क उठे. 18 जुलाई
की सुबह 24 पंचायतों
के 4 हजार लोग
अपना शांतिपूर्ण प्रदर्शन
करने के लिए गुम्मा नामक
जगह पर इकट्ठा
हुए तो वहां कुछ राजनेता
भी पहुंच कर
एकदूसरे पर तंज कसने लगे.
इन नेताओं की
बेतुकी बयानबाजी से
गुस्साए लोगों ने
ठियोग-हाईकोटी नेशनल
हाईवे पर जाम लगा दिया,
जो 7 घंटे चला.
इस बीच एक गाड़ी को
भी तोड़ दिया
गया और मौके पर पहुंचे
ठियोग के एसडीएम
टशी संडूप को
लोगों ने कमरे में बंद
कर दिया.
कुछ पत्रकार गुडि़या के
पिता से मिलने
गए तो मालूम
पड़ा कि केस वापस लेने
के लिए उन्हें
करोड़ों का प्रलोभन
दिया जा रहा था, जबकि
उन्होंने साफ कह
दिया था कि उन्हें पैसा
नहीं चाहिए. न
सरकार की तरफ से न
किसी और से. उन्हें तो
अपनी बेटी के लिए इंसाफ
चाहिए, केवल इंसाफ.
उसी दिन राज्य
सरकार की ओर से प्रदेश
हाईकोर्ट में इस
केस पर जल्दी
सुनवाई करने का आवेदन किया
गया, जो स्वीकार
कर लिया गया.
इस संबंध में
महाधिवक्ता ने न्यायालय
से आग्रह किया
कि सीबीआई को
आदेश दिया जाए
कि तुरंत शिमला
पुलिस से रेकौर्ड
ले कर अपनी काररवाई शुरू करे.
यह आदेश दे भी दिया
गया.
लेकिन उस रात
वह हो गया, जिस की
किसी ने कल्पना
भी नहीं की थी. कोटखाई
थाने की हवालात
में इस केस के एक
अभियुक्त सूरज की
हत्या हो गई. पुलिस के
अनुसार, दूसरे अभियुक्त
राजू ने सूरज का गुप्तांग
मसल कर उसे मार डाला
था.
जैसे ही इस
की खबर लोगों
को लगी, भारी
भीड़ एकत्र हो
कर कोटखाई की
ओर बढ़ने लगी.
19 जुलाई की दोपहर
सवा 3 बजे इस भीड़ ने
कोटखाई थाने को आग लगा
दी. थाने की इमारत के
साथ वहां रखा
रेकौर्ड जल कर राख हो
गया. पुलिस के
कई वाहन जला
दिए गए, साथ ही घोषणा
कर दी गई कि 20 जुलाई
को शिमला बंद
रहेगा.
20 जुलाई को शिमला
शहर समेत समूचे
राज्य में पूर्ण
बंद रहा. गुडि़या
को न्याय की
मांग को ले कर हजारों
लोग सड़कों पर
उतर आए थे. कई जगह
पुलिस वालों पर
पत्थरबाजी हुई तो
इन प्रदर्शनकारियों द्वारा
कई थानों में
भी घुसने की
कोशिश की गई. मृतक सूरज
की पत्नी ममता
ने भी पति को इंसाफ
दिलाने के लिए कमर कस
ली थी.
प्रदेश की कांग्रेस
सरकार ने इस तरह थाने
के भीतर हुई
हत्या को गंभीरता
से लेते हुए
इस की न्यायिक
जांच के आदेश दे दिए,
साथ ही कोटखाई
थाने के थानाप्रभारी
समेत 3 पुलिसकर्मियों को
सस्पेंड कर के एसआईटी के
3 प्रमुख अफसरों आईजी
जैड.एच. जैदी,
एसएसपी शिमला डी.डब्ल्यू. नेगी और एएसपी भजनदेव
नेगी का तबादला
कर दिया गया.
पुलिस के माध्यम
से इस अपराध
की जो मूलकथा
मीडिया तक पहुंची,
वह इस प्रकार
से थी कि 4 जुलाई को
गुडि़या के स्कूल
से घर जाते समय उसे
पिकअप वैन चालक
राजेंद्र उर्फ राजू
रास्ते में मिला.
राजू ने उसे गाड़ी से
छोड़ने की बात कही. वह
राजू को जानती
थी, इसलिए उस
की गाड़ी में
बैठ गई.
पिकअप वैन में
सुभाष बिष्ट, सूरज
सिंह, लोकजन और
दीपक भी बैठे थे. ये
सब शराब के नशे में
थे. कुछ आगे जा कर
राजू ने वैन रोकी और
ये लोग गुडि़या
को घसीट कर जंगल में
ले गए, जहां
उस के कपड़े
फाड़ कर इन लोगों ने
उस के साथ यौनाचार व दुराचार
किया. इस के बाद जब
आरोपियों ने गुडि़या
को मारने की
योजना बनाई तो उस ने
जान की भीख मांगते हुए
कहा, ‘जो करना है करो,
मगर मुझे जान
से मत मारो.
मैं जीना चाहती
हूं. इस घटना के बारे
में मैं किसी
को कुछ नहीं
बताऊंगी.’
लेकिन आरोपियों को उस पर जरा
भी तरस नहीं
आया. उन्हें अपने
फंस जाने का डर था,
लिहाजा उन्होंने गुडि़या
का गला दबा कर उसे
मार डाला.
पुलिस के मुताबिक
इस केस की यही कहानी
थी और ये 5 लोग ही
दोषी थे, अन्य
कोई नहीं. इन
में सूरज वादामाफ
गवाह बनने को तैयार हो
गया था, लेकिन
उसी की हत्या
हो गई.
फिलहाल मीडिया के
जरिए लोग रोजाना
सवालों के गोले दाग रहे
हैं, जिन का कोई पुख्ता
जवाब न पुलिस के पास
है न ही सरकार के
पास. कुछ अहम सवालों की
बानगी इस तरह से है:
अस्पताल में जब
अभियुक्तों को उन
का मैडिकल करवाने
ले जाया गया
था तो एकदूसरे
को गुडि़या का
असली हत्यारा बताते
हुए वे आपस में लड़ते
रहे थे. ऐसे में कस्टडी
रिमांड के दौरान
उन्हें एक ही हवालात में
क्यों रखा गया?
सूरज जब वादामाफ
गवाह बनाया जा
रहा था तो उसे दूसरे
अभियुक्तों से अलग
क्यों नहीं रखा
गया? केस सीबीआई
को भेज दिया
गया है, बावजूद
इस के पुलिस
इन अभियुक्तों का
कस्टडी रिमांड बढ़वा
कर 18-19 जुलाई की
रात में इन्हें
किस बात के लिए इंटेरोगेट
कर रही थी? सूरज की
हत्या कस्टडी रिमांड
के दौरान हवालात
में हुई तो क्या ड्यूटी
पर तैनात पुलिसकर्मियों
ने उस की चीखें नहीं
सुनीं?
पुलिस के पास
इस केस का एक चश्मदीद
है, लेकिन अभी
तक उस के सीआरपीसी की धारा
164 के अंतर्गत बयान
क्यों नहीं दर्ज
कराए गए? सूरज
ने अपना लाई
डिटेक्टर टेस्ट करवाने
की बात कही थी तो
पुलिस ने इस संबंध में
अदालत में अर्जी
क्यों नहीं लगाई
थी? जब गुडि़या
की नग्न लाश
मिली थी तो उस के
कपड़े और स्कूल
बैग वगैरह कहां
से बरामद हुए
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