बात उन दिनों की है, जब सुषमा ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा था. सुषमा काफी खूबसूरत थी, इसलिए उसे जो भी देखता, देखता ही रह जाता. उस के चाहने वालों की संख्या तो बहुत थी, लेकिन वह किसी के दिल की रानी नहीं बन पाई थी.
22 अप्रैल,
2017 की रात करीब
2 बजे की बात है. उत्तर
प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंट के
मोहल्ला हादेव झारखंडी
टुकड़ा नंबर 1 के
रहने वाले देवेंद्र
प्रताप सिंह अपने
घर में सो रहे थे.
अचानक घर की डोलबेल बजी
तो वह बड़बड़ाते
हुए दरवाजे पर
पहुंचे कि इतनी रात को
किसे क्या जरूरत
पड़ गई? चश्मा
ठीक करते हुए
उन्होंने दरवाजा खोला
तो बाहर पुलिस
वालों को देख कर उन्होंने
हैरानी से पूछा,
‘‘जी बताइए, क्या
बात है?’’
‘‘माफ कीजिए भाईसाहब,
बात ही कुछ ऐसी थी
कि मुझे आप को तकलीफ
देनी पड़ी.’’ सामने
खड़े थाना कैंट
के इंसपेक्टर ओमहरि
वाजपेयी ने कहा.
‘‘जी बताएं, क्या
बात है?’’ देवेंद्र
प्रताप ने पूछा.
‘‘आप की बहू
और बेटा कहां
है?’’
‘‘ऊपर अपने कमरे
में पोते के साथ सो
रहे हैं.’’ देवेंद्र
प्रताप सिंह ने कहा.
अब तक परिवार
के बाकी लोग
भी नीचे आ गए थे.
लेकिन न तो देवेंद्र प्रताप सिंह
का बेटा विवेक
प्रताप सिंह आया
था और न ही बहू
सुषमा. इंसपेक्टर ओमहरि
वाजपेयी ने थोड़ा
तल्खी से कहा,
‘‘आप को पता भी है,
आप के बेटे विवेक प्रताप
सिंह की हत्या
कर दी गई है?’’
‘‘क्याऽऽ, आप यह
क्या कह रहे हैं इंसपेक्टर
साहब?’’ देवेंद्र प्रताप
सिंह ने लगभग चीखते हुए
कहा, ‘‘वह हम सब के
साथ रात का खाना खा
कर पत्नी और
बेटे के साथ ऊपर वाले
कमरे में सोने
गया था. अब आप कह
रहे हैं कि उस की
हत्या हो गई है? ऐसा
कैसे हो सकता है, इंसपेक्टर
साहब?’’
‘‘आप जो कह
रहे हैं, वह भी सही
है और मैं जो कह
रहा हूं वह भी. आप
जरा अपनी बहू
को बुलाएंगे?’’ इंसपेक्टर
ओमहरि वाजपेयी ने
कहा.
इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी
की बातों पर
देवेंद्र प्रताप सिंह
को बिलकुल यकीन
नहीं हुआ था. उन्होंने वहीं से बहू सुषमा
को आवाज दी.
3-4 बार बुलाने के
बाद ऊपर से सुषमा की
आवाज आई. उन्होंने
सुषमा को फौरन नीचे आने
को कहा. कपड़े
संभालती सुषमा नीचे
आई तो वहां सब को
इस तरह देख कर परेशान
हो उठी. उस की यह
परेशानी तब और बढ़ गई,
जब उस की नजर पुलिस
और उन के साथ खड़े
एक युवक पर पड़ी. उस
युवक को आगे कर के
इसंपेक्टर ओमहरि ने
कहा, ‘‘सुषमा, तुम
इसे पहचानती हो?’’
उस युवक को
सुषमा ने ही नहीं, सभी
ने पहचान लिया.
उस का नाम कामेश्वर सिंह उर्फ
डब्लू था. वह सुषमा के
मायके का रहने वाला था
और अकसर सुषमा
से मिलने आता
रहता था. सभी उसे हैरानी
से देख रहे थे.
सुषमा कुछ नहीं
बोली तो इंसपेक्टर
ओमहरि वाजपेयी ने
कहा, ‘‘तुम नहीं
पहचान पा रही हो तो
चलो मैं ही इस के
बारे में बताए
देता हूं. यह तुम्हारा प्रेमी डब्लू
है. अभी थोड़ी
देर पहले यह तुम्हारे पति की हत्या कर
के लाश को मोटरसाइकिल से ठिकाने
लगाने के लिए ले जा
रहा था, तभी रास्ते में
इसे हमारे 2 सिपाही
मिल गए. उन्होंने
इसे और इस के एक
साथी को पकड़ लिया. अब
ये कह रहे हैं कि
पति को मरवाने
में तुम भी शामिल थी?’’
ओमहरि वाजपेयी की बातों
पर देवेंद्र प्रताप
सिंह को अभी भी विश्वास
नहीं हुआ था. वह तेजतेज
कदमों से सीढि़यां
चढ़ कर बेटे के कमरे
में पहुंचे. बैड
के एक कोने में 5 साल
का आयुष डरासहमा
बैठा था. दादा
को देख कर वह झट
से उठा और उन के
सीने से जा चिपका. वह
जिस बेटे को खोजने आए
थे, वह कमरे में नहीं
था. देवेंद्र पोते
को ले कर नीचे आ
गए. अब साफ हो गया
था कि विवेक
के साथ अनहोनी
घट चुकी थी.
हैरानी की बात
यह थी कि विवेक के
कमरे के बगल वाले कमरे
में उस के चाचा कृष्णप्रताप
सिंह और चाची दुर्गा सिंह
सोई थीं. हत्या
कब और कैसे हुई, उन्हें
पता ही नहीं चला था.
सभी यह सोच कर हैरान
थे कि घर में सब
के रहते हुए
सुषमा ने इतनी बड़ी घटना
को कैसे अंजाम
दे दिया? मजे
की बात यह थी कि
इतना सब होने के बावजूद
सुषमा के चेहरे
पर जरा भी शिकन नहीं
थी.
सुषमा की खामोशी
से साफ हो गया था
कि यह सब उस की
मरजी से हुआ था. उस
के पास अब अपना अपराध
स्वीकार कर लेने के अलावा
कोई दूसरा उपाय
नहीं था. उस ने घर
वालों के सामने
अपना अपराध स्वीकार
कर लिया. सच्चाई
जान कर घर में कोहराम
मच गया. देवेंद्र
प्रताप सिंह के घर से
अचानक रोने की आवाजें सुन
कर पड़ोसी उन
के यहां पहुंचे
तो विवेक की
हत्या के बारे में सुन
कर हैरान रह
गए. उन की हैरानी तब
और बढ़ गई, जब उन्हें
पता चला कि यह काम
विवेक की पत्नी
सुषमा ने ही कराया था.
पुलिस सुषमा को
साथ ले कर थाना कैंट
आ गई. कामेश्वर
सिंह उर्फ डब्लू
और उस के एक साथी
राधेश्याम पकड़े जा
चुके थे. पता चला कि
उस के 2 साथी
अनिल मौर्य और
सुनील भागने में
कामयाब हो गए थे.
ओमहरि वाजपेयी ने रात होने की
वजह से सुषमा
सिंह को महिला
थाने भिजवा दिया.
रात में कामेश्वर
सिंह उर्फ डब्लू
और उस के साथी राधेश्याम
मौर्य से पुलिस
ने पूछताछ शुरू
की. दोनों ने
अपना अपराध स्वीकार
कर लिया था.
अगले दिन यानी
23 अप्रैल, 2017 की सुबह
मृतक विवेक प्रताप
सिंह के पिता देवेंद्र प्रताप सिंह
ने थाना कैंट
में बेटे की हत्या का
नामजद मुकदमा 6 लोगों
कामेश्वर सिंह उर्फ
डब्लू, राधेश्याम मौर्य,
अनिल मौर्य, सुनील
तेली, सुषमा सिंह
और मुकेश गौड़
के खिलाफ दर्ज
कराया.
पुलिस ने यह
मुकदमा भादंवि की
धारा 302, 201, 147, 149 के तहत
दर्ज किया था.
इस मामले में
3 लोग पकड़े जा
चुके थे, बाकी
की तलाश में
पुलिस निकल पड़ी.
पूछताछ में गिरफ्तार
किए गए कामेश्वर
सिंह उर्फ डब्लू
ने विवेक की
हत्या की जो कहानी सुनाई
थी, वह इस प्रकार थी—
32 साल की सुषमा
सिंह मूलरूप से
जिला देवरिया के
थाना गौरीबाजार के
गांव पथरहट के
रहने वाले सुरेंद्र
बहादुर सिंह की बेटी थी.
उन की संतानों
में वही सब से बड़ी
थी. बात उन दिनों की
है, जब सुषमा
ने जवानी की
दहलीज पर कदम रखा था.
सुषमा काफी खूबसूरत
थी, इसलिए उसे
जो भी देखता,
देखता ही रह जाता. उस
के चाहने वालों
की संख्या तो
बहुत थी, लेकिन
वह किसी के दिल की
रानी नहीं बन पाई थी.
इस मामले में
अगर किसी का भाग्य जागा
तो वह था कामेश्वर सिंह उर्फ
डब्लू.
32 साल का कामेश्वर
सिंह उर्फ डब्लू
उसी गांव के रहने वाले
दीपनारायण सिंह का
बेटा था. उन की गांव
में तूती बोलती
थी. गांव का कोई भी
आदमी दीपनारायण से
कोई संबंध नहीं
रखता था. उस के किसी
कामकाज में भी कोई नहीं
आताजाता था. डब्लू
18-19 साल का था,
तभी वह भी पिता के
नक्शेकदम पर चल
निकला था. वह भी अपने
सामने किसी को कुछ नहीं
समझता था. पुलिस
सूत्रों के अनुसार,
कामेश्वर सिंह उर्फ
डब्लू इंटर तक ही पढ़
पाया था. इस के बाद
वह अपराध में
डूब गया. जल्दी
ही आसपास के
ही नहीं, पूरे
जिले के लोग उस से
खौफ खाने लगे.
डब्लू का बड़ा भाई बबलू
पुलिस विभाग में
सिपाही था. वह शराब पीने
का आदी था. उसे नौकरी
से बर्खास्त कर
दिया गया था.
सन 2010 में गांव
के बाहर एक तालाब में
पुलिस वर्दी में
बबलू की लाश तैरती मिली
थी. लोगों का
कहना था कि शराब के
नशे में वह डूब कर
मर गया था. लेकिन डब्लू
और उस के घर वालों
का मानना था
उस की हत्या
की गई थी. यह हत्या
किसी और ने नहीं, गांव
के ही उस के विरोधी
रमेश सिंह ने की थी.
लेकिन यह बात उन लोगों
ने रमेश सिंह
से ही नहीं,
गांव के भी किसी आदमी
से नहीं कही
थी.
इस की वजह
यह थी कि डब्लू को
रमेश सिंह से भाई की
मौत का बदला लेना था.
इस के लिए उस ने
रमेश सिंह से दोस्ती गांठ
ली. फिर एक दिन गांव
के पास ही वह रमेश
सिंह के साथ शराब पीने
बैठा. उस ने जानबूझ कर
रमेश सिंह को खूब शराब
पिलाई.
जब रमेश सिंह
नशे में बेकाबू
हो गया तो डब्लू ने
हंसिए से उस का गला
धड़ से अलग कर दिया.
इस के बाद रमेश सिंह
का कटा सिर लिए वह
मां के पास पहुंचा और
सिर उन के सामने कर
के बोला, ‘‘देखो
मां, यही भैया
का हत्यारा था.
आज मैं ने इस के
किए की सजा दे दी.
इसे वहां भेज
दिया, जहां इसे
बहुत पहले पहुंच
जाना चाहिए था.’’
यह सन 2011 की बात है.
इस के बाद
रमेश सिंह का कटा सिर
लिए डब्लू पूरे
गांव में घूमा.
डब्लू के दुस्साहस
को देख कर गांव में
दहशत फैल गई. पुलिस उस
तक पहुंच पाती,
उस से पहले ही वह
रमेश सिंह का सिर फेंक
कर फरार हो गया. लेकिन
पुलिस के चंगुल
से वह ज्यादा
समय तक नहीं बच पाया.
पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज
दिया.
जमानत पर जेल
से बाहर आने
के बाद डब्लू
को लगा कि गांव के
ही रहने वाले
रमेश सिंह के करीबी पूर्व
ग्रामप्रधान शातिर बदमाश
अरुण सिंह उस की हत्या
करवा सकते हैं.
फिर क्या था,
वह उन्हें ठिकाने
लगाने की योजना
बनाने लगा.
25 अप्रैल,
2013 को किसी काम
से अरुण सिंह
अपनी मोटरसाइकिल से
कहीं जा रहे थे, तभी
मचिया चौराहे पर
घात लगा कर बैठे डब्लू
ने गोलियों से
भून डाला. घटनास्थल
पर ही उन की मौत
हो गई. उस समय तो
वह फरार हो गया था,
लेकिन बाद में पुलिस ने
उसे गिरफ्तार कर
जेल भेज दिया
था.
बात उस समय
की है, जब सुषमा कालेज
में पढ़ती थी.
संयोग से उसी कालेज में
डब्लू भी पढ़ता
था. चूंकि दोनों
एक ही गांव के रहने
वाले थे, इसलिए
कालेज आतेजाते अकसर
दोनों की मुलाकात
हो जाती थी.
सुषमा खूबसूरत तो
थी ही, डब्लू
भी कम स्मार्ट
नहीं था. साथ आनेजाने में ही दोनों में
प्यार हो गया. सुषमा डब्लू
के आपराधिक कारनामों
के बारे में
जानती थी, इस के बावजूद
उस से प्यार
करने लगी.
सुषमा और डब्लू
की प्रेमकहानी जल्दी
ही गांव वालों
के कानों तक
पहुंच गई. फिर तो इस
की जानकारी सुरेंद्र
बहादुर सिंह को भी हो
गई. बेटी की इस करतूत
से पिता का सिर शरम
से झुक गया.
उन्होंने सुषमा को
डब्लू से मिलने
के लिए मना तो किया
ही, उस के घर से
निकलने पर भी पाबंदी लगा
दी. इस का नतीजा यह
निकला कि एक दिन वह
मांबाप की आंखों
में धूल झोंक
कर डब्लू के
साथ भाग गई. इस के
बाद दोनों ने
मंदिर में शादी
कर ली. यह
7-8 साल पहले की बात है.
सुषमा के भाग
जाने से सुरेंद्र
बहादुर सिंह की काफी बदनामी
हुई. डब्लू आपराधिक
प्रवृत्ति का था,
इसलिए वह उस का कुछ
कर भी नहीं सकते थे.
फिर भी उन्होंने
पुलिस के साथसाथ
बिरादरी की मदद ली. पुलिस
और बिरादरी के
दबाव में डब्लू
ने सुषमा को
उस के घर वापस भेज
दिया. सुषमा के
घर वापस आने
के बाद सुरेंद्र
बहादुर सिंह ने उस के
घर से बाहर जाने पर
सख्त पाबंदी लगा
दी.
संयोग से उसी
बीच रमेश सिंह
की हत्या के
आरोप में डब्लू
जेल चला गया तो सुरेंद्र
बहादुर सिंह ने राहत की
सांस ली. डब्लू
की जो छवि बन चुकी
थी, उस से वह काफी
डरे हुए थे. वह जेल
चला गया तो उन्होंने इस मौके का फायदा
उठाया और आननफानन
में सुषमा की
शादी गोरखपुर के
रहने वाले संपन्न
और सभ्य देवेंद्र
प्रताप सिंह के बेटे विवेक
प्रताप सिंह उर्फ
विक्की से कर दी.
यह शादी इतनी
जल्दी में हुई थी कि
देवेंद्र प्रताप सिंह
बहू के बारे में कुछ
पता नहीं कर सके. जेल
में बंद डब्लू
को जब सुषमा
की शादी के बारे में
पता चला तो वह सुरेंद्र
बहादुर सिंह पर बहुत नाराज
हुआ. लेकिन वह
सुषमा के पिता थे, इसलिए
वह उन्हें कोई
नुकसान नहीं पहुंचाना
चाहता था. पर उस ने
यह जरूर तय कर लिया
था कि वह सुषमा को
खुद से अलग नहीं होने
देगा. इस के लिए उसे
कुछ भी करना पड़े, वह
करेगा.
सुषमा ने भले
ही विवेक से
शादी कर ली थी, लेकिन
उस का तन और मन
डब्लू को ही समर्पित था. हर घड़ी वह
उसी के बारे में सोचती
रहती थी. जल्दी
ही वह विवेक
के बेटे आयुष
की मां बन गई. जनवरी,
2013 में जब डब्लू
जमानत पर जेल से बाहर
आया तो सुषमा
से मिलने गोरखपुर
स्थित उस की ससुराल पहुंच
गया.
डब्लू को देख
कर सुषमा बहुत
खुश हुई. उस का प्यार
उस के लिए फिर जाग
उठा. इस के बाद वे
किसी न किसी बहाने एकदूसरे
से मिलने लगे.
फोन पर तो बातें होती
ही रहती थीं.
उसी बीच 25 अप्रैल,
2013 को डब्लू ने
पूर्वप्रधान अरुण सिंह
की हत्या कर
दी तो वह एक बार
फिर जेल चला गया. इस
बार वह 5 सालों
बाद 18 मार्च, 2017 को
जेल से बाहर आया तो
एक बार फिर उस का
सुषमा से मिलनाजुलना
शुरू हो गया.
डब्लू बारबार सुषमा
से मिलने आने
लगा तो विवेक
प्रताप सिंह को पत्नी के
चरित्र पर संदेह
हो गया. इस के बाद
पतिपत्नी में अकसर
झगड़ा होने लगा.
वह डब्लू को
अपने यहां आने
से मना करने
लगा. लेकिन सुषमा
उस की एक नहीं सुनती
थी. पत्नी के
इस व्यवहार से
विवेक काफी परेशान
रहने लगा. रोजरोज
के झगड़े से
बेटा भी परेशान
रहता था. डब्लू
को ले कर पतिपत्नी में संबंध
काफी बिगड़ गए.
दोनों के बीच मारपीट भी
होने लगी.
सुषमा विवेक की
कोई बात नहीं
मानती थी. रोजरोज
के झगड़े से
परेशान विवेक अपने
दुख को किसी से न
कह कर फेसबुक
पर पोस्ट किया
करता था. दूसरी
ओर सुषमा भी
पति से ऊब चुकी थी.
अब वह उस से छुटकारा
पाने के बारे में सोचने
लगी. जब उस ने यह
बात डब्लू से
कही तो उस ने आश्वासन
दिया कि उसे चिंता करने
की जरूरत नहीं
है. वह जब चाहेगा, उसे विवेक
से छुटकारा दिलवा
देगा. उस के बाद दोनों
एक साथ रहेंगे.
डब्लू के लिए
किसी की जान लेना मुश्किल
काम नहीं था.
सुषमा के कहने के बाद
वह विवेक की
हत्या की योजना
बनाने लगा. सुषमा
भी योजना में
शामिल थी. दोनों
विवेक की हत्या
इस तरह करना
चाहते थे कि उन का
काम भी हो जाए और
उन का बाल भी बांका
न हो. यानी
वे पकड़े न जाएं. वे
विवेक की हत्या
को एक्सीडेंट दिखाना
चाहते थे. इस के लिए
डब्लू ने टाटा सफारी कार
की व्यवस्था कर
ली थी. यह कार उस
के पिता की थी. इस
के बाद वे घटना को
अंजाम देने का मौका तलाशने
लगे.
22-23 मई,
2017 की रात सुषमा
सिंह ने योजना
के तहत डब्लू
को बुला लिया.
डब्लू टाटा सफारी
कार यूपी52ए के5990 से
अपने 3 साथियों राधेश्याम
मौर्य, अनिल मौर्य
और सुनील तेली
के साथ विशुनपुरा
पहुंच गया. उन्होंने
कार घर से कुछ दूरी
पर स्थित प्रदूषण
नियंत्रण बोर्ड के
औफिस के सामने
खड़ी कर दी. कार का
ड्राइवर अशोक उसी
में बैठा था.
डब्लू अपने साथियों
के साथ विवेक
के घर पहुंचा
तो सुषमा दरवाजा
खोल कर सभी को बैडरूम
में ले गई. बैड पर
विवेक बेटे के साथ सो
रहा था. विवेक
की हत्या के
लिए सुषमा ने
एक ईंट पहले
से ही ला कर कमरे
में रख ली थी. कमरे
में पहुंचते ही
डब्लू ने विवेक
का गला दबोच
लिया. विवेक छटपटाया
तो उस के साथियों ने उसे काबू कर
लिया. उन्हीं में
से किसी ने सुषमा द्वारा
रखी ईंट से सिर पर
प्रहार कर के उसे मौत
के घाट उतार
दिया.
धक्कामुक्की और छीनाझपटी
में पिता के बगल में
सो रहे आयुष
की आंखें खुल
गईं. उस ने देखा कि
कुछ लोग उस के पापा
को पकड़े हैं
तो वह चिल्ला
उठा. उस के चीखने पर
सब डर गए. डब्लू ने
उसे डांटा तो
उस की आवाज गले में
फंस कर रह गई. इस
के बाद वह आंखें मूंद
कर लेट गया.
एक बार सभी ने विवेक
को हिलाडुला कर
देखा, जब उस के शरीर
में कोई हरकत
नहीं हुई तो सब समझ
गए कि यह मर चुका
है.
इस के बाद
उन्होंने लाश उठाई
और ऊपर से ही नीचे
फेंक दी. फिर दबेपांव सीढ़ी से
नीचे आ गए. डब्लू ने
बरामदे में खड़ी
विवेक की मोटरसाइकिल
निकाली और खुद चलाने के
लिए बैठ गया.
जबकि राधेश्याम विवेक
की लाश को ले कर
इस तरह बैठ गया, जैसे
वह बीच में बैठा है.
बाकी के उस के 2 साथी
अनिल और सुनील
पैदल ही प्रदूषण
नियंत्रण बोर्ड के
औफिस की ओर चल पड़े.
क्योंकि उन
की कार वहीं
खड़ी थी.
लेकिन जब वे
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
के पास पहुंचे
तो कार वहां
नहीं थी. सभी परेशान हो
उठे. दरअसल हुआ
यह था कि उन के
जाने के कुछ ही देर
बाद गश्त करते
हुए 2 सिपाही वहां
आ पहुंचे थे.
उन्होंने आधी रात
को कार खड़ी
देखी तो ड्राइवर
अशोक से पूछताछ
करने लगे. घबरा
कर ड्राइवर अशोक
कार ले कर भाग गया.
ड्राइवर डब्लू को
फोन करता रहा,
लेकिन फोन बंद होने की
वजह से बात नहीं हो
पाई.
डब्लू के आने
पर वहां कार
नहीं मिली तो उसे चिंता
हुई. वह ड्राइवर
को फोन करने
ही जा रहा था कि
पुलिस चौकी रामगढ़ताल
के 2 सिपाही वहां
आ पहुंचे. उन्होंने
उन से पूछताछ
शुरू की तो वे सही
जवाब नहीं दे सके. सिपाहियों
ने थाना कैंट
फोन कर के थानाप्रभारी ओमहरि वाजपेयी
को इस की सूचना दे
दी.
ओमहरि वाजपेयी मौके पर पहुंचे तो
उन्हें मामला संदिग्ध
लगा. उन्होंने बीच
में बैठे विवेक
को हिलाडुला कर
देखा तो पता चला कि
वह तो लाश है. डब्लू
और राधेश्याम से
सख्ती से पूछताछ
की गई तो विवेक की
हत्या का राज खुल गया.
दूसरी ओर जब
सभी विवेक की
लाश ले कर चले गए
तो सुषमा कमरे
में फैला खून
साफ करने लगी.
उस ने जल्दी
से चादर और तकिए भी
बदल दिए थे. उस ने
सबूत मिटाने की
पूरी कोशिश की
थी. तब शायद उसे पता
नहीं था कि उस ने
जो किया है,
उस का राज तुरंत ही
खुलने वाला है.
आयुष अपने पापा
विवेक प्रताप सिंह
की हत्या का
चश्मदीद गवाह है.
उस ने पुलिस
को बताया कि
जब अंकल लोग
उस के पापा को पकड़े
हुए थे तो वह चीखा
था. तब एक अंकल ने
उस का मुंह दबा कर
डांट दिया था.
उन लोगों ने
पापा का गला तो दबाया
ही, उन्हें ईंट
से भी मारा था.
वे पापा को
ले कर चले गए तो
मम्मी कमरे में
फैला खून साफ करने लगी
थीं. वे उसे भी मारना
चाहते थे, तब मम्मी ने
एक अंकल से कहा था,
‘यह तो तुम्हारा
ही बेटा है,
इसे मत मारो.’
इस के बाद अंकल ने
उसे छोड़ दिया
था.
विवेक की लाश
उस की मोटरसाइकिल
से इसलिए ला
रहे थे, ताकि
उसे सड़क पर उस की
मोटरसाइकिल सहित कहीं
फेंक कर यह दिखाया जा
सके कि उस की मौत
सड़क दुर्घटना में
हुई है.
पुलिस ने अनिल
और सुनील को
गिरफ्तार कर लिया
था. लेकिन ड्राइवर
अशोक अभी पकड़ा
नहीं जा सका है. टाटा
सफारी कार बरामद
हो चुकी है.
पुलिस ने विवेक
की हत्या में
प्रयुक्त खून से
सनी ईंट, खून
सने कपड़े आदि
भी बरामद कर
लिए थे. विवेक
की मोटरसाइकिल तो
पहले ही बरामद
हो चुकी थी.
सारी बरामदगी के बाद पुलिस ने
अदालत में सभी को पेश
किया, जहां से उन्हें जेल
भेज दिया गया.
मजे की बात यह है
कि सुषमा को
पति की हत्या
का जरा भी अफसोस नहीं
है. वह जेल से बाहर
आने के बाद अब भी
अपने प्रेमी डब्लू
के साथ जीवन
बिताने के सपने देख रही
है.
– कथा पुलिस सूत्रों
पर आधारित
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