Tuesday, 31 July 2018

पसरते अपराध पर लगाम कब?


दूनिया में मानव तस्करी को सबसे बड़ा अपराध माना जाता है पर इसमें हैरानी यह है कि 155 देशों में से 62 देशों में आज तक ‘‘मानव तस्करीके मामले में एक को भी अपराधी नहीं ठहराया गया। शायद यही वजह है कि इधर हाल में जब दिल्ली के मुनीरिका इलाके में दिल्ली महिला आयोग ने 16 नेपाली लड़कियों को दलालों के चंगुल से छुड़ाया गया, तो भी इसकी ज्यादा उम्मीद नहीं बंधी कि कोई सरकार और प्रशासन भविष्य में इस समस्या की पुख्ता रोकथाम की व्यवस्था कर पाएगा। इस मामले में स्थिति यह है कि नेपाल से तस्करी कर लाई गई लड़कियों को मुनीरिका की जिस जगह से छुड़ाया गया, वह पुलिस थाने से महज 500 मीटर दूर स्थित है, अरसे से नौकरी दिलाने के नाम पर लड़कियों को वहां लाया जा रहा था, लेकिन उसकी भनक पुलिस को नहीं लगी। यह भी उल्लेखनीय है कि इन्हीं के साथ आई सात लड़कियों को पहले ही कुवैत और इराक भेजा जा चुका है। मानव तस्करी की कई विडबंनाएं हैं। जैसे में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के ड्रग्स एंड क्राइम ऑफिस के मुताबिक हर साल करीब 25 लाख लोग इसके शिकार होते हैं। इनमें से 80 फीसद महिलाएं और बच्चे होते हैं। इस बारे में यूनिसेफ के भी कुछ आंकड़े हैं। यूनिसेफ का कहना है कि हर साल करीब 12 लाख बच्चों (ज्यादातर लड़कियों) को मानव तस्करी में लगे रैकेट के जरिए एक देश से दूसरे देश पहुंचाया जाता है। कई देशों में तस्करी कर लाए गए लोगों को शरणार्थी के तौर पर देखा जाता है और चूंकि वहां पुख्ता एंटी ट्रैफिकिंग कानून नहीं हैं या उनके दूसरे देशों से सूचना बांटने और कार्रवाई करने के करार नहीं हैं, इसलिए ऐसे लोगों के भविष्य को लेकर लापरवाही बरती जाती है। ऐसे में मानव तस्करी में लगे लोगों को इस अवैध धंधे में फायदा ज्यादा और खतरा कम होता है। सवाल है कि ह्युमन ट्रैफिकिंग में लाए गए लोगों का आखिर क्या होता है? तो इसका अहम जवाब है यौन शोषण। गरीब, गृहयुद्ध में फंसे और उपेक्षित देशों से जबरन या धोखे से लाई गई लड़कियों में से करीब 80 फीसद को इसी धंधे में धकेला जाता है। यूरोपीय देश और खाड़ी के कुवैत-इराक जैसे देशों में ले जाई गई लड़कियों से जबरन देह व्यापार कराया जाता है। यूरोप इसके लिए एक पसंदीदा ठिकाना है क्योंकि वहां देह व्यापार में अच्छी कमाई होती है। इस समस्या से पीड़ित होने वालों में एशियाई देश सबसे आगे हैं क्योंकि गरीबी और भुखमरी से बचने के लिए कई बार लोग खुद ही अपने परिवारों की लड़िकयों को दलालों के हाथों सौंप देते हैं। एक बार इस दलदल में फंसने के बाद महिलाओं को वहां से निकाल पाना कतई आसान नहीं होता है। हालांकि एक तय यह भी है कि देशों के भीतर एक राज्य से दूसरे राज्य में होने वाली मानव तस्करी अंततराष्ट्रीय तस्करी से कई गुना ज्यादा होती है। इसमें संदेह नहीं है कि मानव तस्करी के ज्यादातर मामलों में यह जानना काफी मुश्किल होता है कि मजदूरी या छोटी-मोटी नौकरी के नाम पर एक देश से दूसरे देश में अवैध रास्तों और तरीकों से धकेले गए लोग स्वेच्छा से ऐसा करते हैं या उन्हें बहला-फुसलाकर इसके लिए राजी कराया जाता है। लेकिन समस्या की विकरालता को देखते हुए यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि आप्रवासन के नाम पर हो रहे गोरखधंधे पर रोक लगाई जाए और आप्रवास के पूरे मामले को कानूनी दायरों में लाया जाए?खास तौर पर महिलाओं की दुर्दशा के संबंध में ऐसा करने की तत्काल जरूरत है। मानव अंगों की सप्लाई, जबरन मजदूरी, भीख मंगवाने, शादी के लिए छल करने और शादी के बाद महिलाओं और उनके बच्चों की तस्करी करने जैसे जैसे अपराध मानव तस्करी के रूप में हो रहे हैं। ऐसे भी मामले सामने आए हैं जब लड़कियों को वक्त से पहले जवान करने के वास्ते उन्हें हॉर्मोन्स के इंजेक्शन दिए गए ताकि देह व्यापार की जरूरतों को पूरा किया जा सके। इंसान चूंकि अच्छे जीवन की खोज के लालच से बाहर नहीं जा पाता है, लिहाजा मानव तस्करी की पूरी तरह रोकथाम कर पाना किसी भी देश या सरकार के लिए आसान नहीं है। लेकिन अवैध घुसपैठ पर अंकुश लगाकर और वीजा-पासपोर्ट की वैधताओं को सुनिश्चित करने वाली व्यवस्थाएं बनाकर इस पर कुछ हद तक काबू पाया जा सकता है। मानव तस्करी की सूचनाओं को सरकारें और प्रशासन गंभीरता से लें और उन पर कार्रवाई करें तो ही इस दिशा में कुछ बदलाव संभव है। सरहदें पार करने के रास्ते वैध हों और पुलिस-प्रशासन तस्करी की हर मुमकिन कोशिश को रोकें, तो हालात बदले जा सकते हैं।

यह सरकारी नरक


बिहार के मुजफ्फरपुर शहर में स्थित सरकारी बालिका गृह में असहाय लड़कियां जो नरक भुगत रही थीं, उसके ब्यौरे उजागर होने के साथ ही हर भारतीय नागरिक का सिर शर्म से झुकता जा रहा है। बरसों से यह सरकारी बालिका गृह नियम-कानूनों को ठेंगा दिखाते हुए चलाया जाता रहा और निगरानी निरीक्षण इसके लिए निरर्थक शब्द ही बने रहे। किसी भी स्तर पर कभी जरा सी भनक तक नहीं लगी कि छोटी-छोटी बच्चियों को वहां किस दुर्दशा से गुजरना पड़ रहा है। इसके संचालक की ऊंची राजनीतिक पहुंच पूरे सरकारी तंत्र पर इस कदर हावी रही कि केवल उसका बालिका गृह का टेंडर सुरक्षित रहा, बल्कि नए-नए ठेके भी उसे बेरोक-टोक मिलते रहे। इस बालिका गृह की असलियत का खुलासा टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) के उन छात्रों ने खोली, जिनकी रिपोर्ट- संचालकों के मुताबिक- ध्यान देने लायक ही नहीं है। हैरत की बात यह है कि इस रिपोर्ट के बाद बालिका गृह में रह रही लड़कियों ने जज के सामने बयान देकर इसकी सच्चाई पर अपनी मुहर लगा दी, लेकिन सरकार के संज्ञान में होने के बावजूद यह रिपोर्ट इसी संचालक को पटना में भिखारियों के उद्धार का एक और ठेका हथियाने से नहीं रोक पाई। खबर सार्वजनिक होने के बाद ही इस ठेके को रद्द किया गया। समाज में अनाथ लड़के-लड़कियां, वृद्ध, अपाहिज आदि अनेक ऐसे समूह हैं जो बेहद अमानवीय स्थितियों में जीवन बिताने को मजबूर हैं। मगर जब इनके उद्धार के नाम पर बनी और सरकारी पैसों से चलने वाली संस्थाएं भी इनके साथ ऐसा सलूक करने लग जाएं तो उम्मीद के लिए कोई जगह ही नहीं बचती। जब सरकारी संरक्षण में रह रही सात-आठ साल की बच्चियों को भीगंदे कामसे खुद को बचाने के लिए अपने आपको घायल करना पड़े, तो इस संस्था का संचालन करने वाली सरकार के पास अपने बचाव में कहने को क्या रह जाता है/ और हां, ऐसे मामले सिर्फ एक शहर या एक राज्य तक सीमित नहीं हैं। लिहाजा कम से कम अब से राजनीतिक गुणा-भाग छोड़कर निराश्रित बच्चों, खासकर बच्चियों की देखरेख के लिए जिम्मेदार देश की सभी संस्थाओं के माहौल की पुख्ता जांच कराई जाए, ताकि सेक्स स्लेव बनना उनकी नियति बने और हमें भी इस समाज में जिंदा रहने पर शर्मिंदगी महसूस हो।
               

ବୁଢ଼ୀ ଅସୁରୁଣୀ

  ଶୈଶବରେ ଆମମାନଙ୍କ ଭିତରୁ ଯେଉଁମାନେ ସେମାନଙ୍କ ଜେଜେ ମା ’ ବା ଆଈମାନଙ୍କ ଠାରୁ ବୁଢ଼ୀ ଅସୁରୁଣୀ ଗପ ଶୁଣିଛନ୍ତି , ସେମାନେ ଅନେକ ସମୟରେ ଚକିତ ହେ...